fundamental(theory)

Writer:- Mr.ShashiKant Srivastav (SKS)

UNIT-1
Development of Computer (कंप्यूटर का विकास)
Abacus:-
Computer
का इतिहास लगभग 3000 वर्ष पुराना है| जब चीन में  एक calculation Machine Abacus का अविष्कार हुआ था यह एक Mechanical Device है जो आज भी चीन, जापान सहित एशिया के अनेक देशो में अंको की गणना के लिए  काम आती थी| Abacus तारों का एक फ्रेम होता हैं  इन तारो में बीड (पकी हुई मिट्टी के गोले) पिरोये रहते हैं प्रारंभ में Abacus को व्यापारी Calculation करने के काम में Use किया करते थे यह Machine अंको को जोड़ने, घटाने, गुणा करने तथा भाग देने के काम आती हैं
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Blase Pascal:-
शताब्दियों के बाद अनेक अन्य यांत्रिक मशीने अंकों की गणना के लिए विकसित की गई । 17 वी शताब्दी में फ्रांस के गणितज्ञ ब्लेज पास्कल (Baize Pascal) ने एक यांत्रिक अंकीय गणना यंत्र (Mechanical Digital Calculator) सन् 1645 में विकसित किया गया । इस मशीन को एंडिंग मशीन (Adding Machine) कहते थे, क्योकि यह केवल जोड़ या घटाव कर सकती थी । यह मशीन घड़ी और ओडोमीटर के सिद्धान्त पर कार्य करती थी ।  उसमें कई दाँतेयुक्त चकरियाँ (toothed wheels) लगी होती थी जो घूमती रहती थी चक्रियों के दाँतो पर 0 से 9 तक के अंक छपे रहते थे प्रत्येक चक्री का एक स्थानीय मान होता था जैसे इकाई, दहाई, सैकड़ा आदि इसमें एक चक्री के घूमने के बाद दूसरी चक्री घूमती थी Blase Pascal की इस Adding Machine को Pascaline भी कहते हैं|
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Jacquard’s Loom:-
सन् 1801 में फ्रांसीसी बुनकर (Weaver) जोसेफ जेकार्ड (Joseph Jacquard) ने कपड़े बुनने के ऐसे लूम (Loom) का अबिष्कार किया जो कपड़ो में डिजाईन (Design)  या पैटर्न (Pattern) को कार्डबोर्ड के छिद्रयुक्त पंचकार्डो से नियंत्रित करता था | इस loom की  विशेषता यह थी  की यह कपडे के Pattern को Cardboard  के छिद्र युक्त पंचकार्ड से नियंत्रित करता था पंचकार्ड पर चित्रों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति द्वारा धागों को निर्देशित किया जाता था|
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Charles Babbage:-
कप्यूटर के इतिहास में 19 वी शताब्दी को प्रारम्भिक समय का स्वर्णिम युग माना जाता है । अंग्रेज गणितज्ञ Charles Babbage ने एक यांत्रिक गणना मशीन (Mechanical Calculation Machine) विकसित करने की आवश्यकता तब महसूस की जब गणना के लिए बनी हुई सारणियों  में Error आती थी चूँकि यह Tables हस्त निर्मित (Hand-set) थी इसलिए इसमें Error आ जाती थी |
चार्ल्स बैबेज ने सन् 1822 में एक मशीन का निर्माण किया जिसका व्यय ब्रिटिश सरकार ने वहन किया । उस मशीन का नाम डिफरेंस इंजिन (Difference Engine) रखा गया, इस मशीन में गियर और साफ्ट लगे थे । यह भाप से चलती थी । सन् 1833 में Charles Babbage ने Different Engine का विकसित रूप Analytical Engine तैयार किया जो बहुत ही शक्तिशाली मशीन थी बैवेज का कम्प्यूटर के विकास में बहुत बड़ा योगदान रहा हैं । बैवेज का एनालिटिकल इंजिन आधुनिक कम्प्यूटर का आधार बना और यही कारण है कि चार्ल्स बैवेज को कमप्यूटर विज्ञान का जनक कहा जाता हैं |
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Dr. Howard Aiken’s Mark-I:-
सन् 1940 में विद्युत यांत्रिक कम्प्यूटिंग (Electrometrical Computing) शिखर पर पहुँच चुकी थी ।IBM के चार शीर्ष इंजीनियरों व डॉ. हॉवर्ड आइकेन ने सन् 1944 में एक मशीन विकसित किया यह विश्व का सबसे पहला विधुत यांत्रिक कंप्यूटरथा  और इसका official Name– Automatic Sequence Controlled Calculator रखा गया। इसे हार्वर्ड विश्वविद्यालय को सन् 1944 के फरवरी माह में भेजा गया जो विश्वविद्यालय में 7 अगस्त 1944 को प्राप्त हुआ | इसी विश्वविद्यालय में इसका नाम मार्क- I पड़ा| यह 6 सेकंड में 1 गुणा व 12 सेकंड में 1 भाग कर सकता था|
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A.B.C. (Atanasoff – Berry Computer) :-
सन् 1945 में एटानासोफ़ (Atanasoff) तथा क्लोफोर्ड बेरी (Clifford berry) ने एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन का विकास किया जिसका नाम ए.बी.सी.(ABC) रखा गया| ABC शब्द Atanasoff Berry Computer का संक्षिप्त रूप हैं | ABC सबसे पहला इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कंप्यूटर (Electronic Digital Computer) था |

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Computer System Concept (कंप्यूटर की अवधारणा)
एक या एक से अधिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यरत इकाइयों के समूह को एक “System” कहते हैं| जैसे – Hospital एक System है जिसकी इकाइयां (units) Doctor, Nurse, Medical, Treatment, Operation, Peasant आदि हैं इसी प्रकार Computer भी एक System के रूप में कार्य करता है जिसके निम्नलिखित भाग हैं|
·              Hardware
·              Software
·              User
Hardware:-  Computer के वे भाग जिन्हें हम छु सकते है देख सकते है Hardware कहलाते हैं| जैसे-Keyboard, Mouse, Printer, Scanner, Monitor, C.P.U. etc.
Software:- Computer के वे भाग जिन्हें हम छु नहीं सकते सिर्फ देख सकते हैं सॉफ्टवेयर (Software) कहलाते हैं| जैसे- MS Word, MS Excel, MS PowerPoint, Photoshop, PageMaker etc.
User:- वे व्यक्ति जो Computer को चलाते है Operate करते है और Result को प्राप्त करते है, User कहलाते हैं|

Features / Characteristics of Computer (कंप्यूटर की विशेषताये)

Speed (गति):- आप पैदल चल कर कही भी जा सकते है फिर भी साईकिल, स्कूटर या कार का इस्तेमाल करते है ताकि आप किसी भी कार्य को तेजी से कर सके Machine की सहायता से आप कार्य की Speed बड़ा सकते है इसी प्रकार Computer किसी भी कार्य को बहुत तेजी से कर सकता है Computer कुछ ही Second में गुणा, भाग, जोड़, घटाना जैसी लाखो क्रियाएँ कर सकता है यदि आपको 500*44 का मान ज्ञात करना है तो आप 1 या 2 Minute लेगे यही कार्य Calculation से करे तो वह लगभग 1 या 2 Second का समय लगेगा पर कंप्यूटर एसी लाखों गणनाओ को कुछ ही सेकंड में कलर सकता हैं|
Automation (स्वचालन):-
हम अपने दैनिक जीवन में कई प्रकार की स्वचलित मशीनों का Use करते है Computer भी अपना पूरा कार्य स्वचलित (Automatic) तरीके से करता है कंप्यूटर अपना कार्य, प्रोग्राम के एक बार लोड हो जाने पर स्वत: करता रहता हैं|
 Accuracy (शुद्धता):-
Computer अपना सारा कार्य बिना किसी गलती के करता है यदि आपको 10 अलग-अलग संख्याओ का गुणा करने के लिए कहा जाए तो आप इसमें कई बार गलती करेगे | लेकिन साधारणत: Computer किसी भी Process को बिना किसी गलती के पूर्ण कर सकता है Computer द्वारा गलती किये जाने का सबसे बड़ा कारण गलत Data Input करना होता है क्योकि Computer स्वयं कभी कोई गलती नहीं करता हैं|
Versatility (सार्वभौमिकता):-
Computer अपनी सार्वभौमिकता के कारण बढ़ी तेजी से सारी दुनिया में अपना प्रभुत्व जमा रहा है Computer गणितीय कार्यों को करने के साथ साथ व्यावसायिक कार्यों के लिए भी प्रयोग में लाया जाने लगा है| Computer का प्रयोग हर क्षेत्र में होने लगा है| जैसे- Bank, Railway, Airport, Business, School etc.
High Storage Capacity (उच्च संग्रहण क्षमता):-
एक Computer System में Data Store करने की क्षमता बहुत अधिक होती है Computer लाखो शब्दों को बहुत कम जगह में Store करके रख सकता है यह सभी प्रकार के Data, Picture, Files, Program, Games and Sound को कई बर्षो तक Store करके रख सकता है तथा बाद में हम कभी भी किसी भी सूचना को कुछ ही Second में प्राप्त कर सकते है तथा अपने Use में ला सकते है|
Diligence (कर्मठता):-
आज मानव किसी कार्य को निरंतर कुछ ही घंटो तक करने में थक जाता है इसके ठीक विपरीत Computer किसी कार्य को निरंतर कई घंटो, दिनों, महीनो तक करने की क्षमता रखता है इसके बावजूद उसके कार्य करने की क्षमता में न तो कोई कमी आती है और न ही कार्य के परिणाम की शुद्धता घटती हैं| Computer किसी भी दिए गए कार्य को बिना किसी भेदभाव के करता है चाहे वह कार्य रुचिकर हो या न हो |
Reliability (विश्वसनीयता):-
Computer की Memory अधिक शक्तिशाली होती है Computer से जुडी हुई संपूर्ण प्रक्रिया विश्वसनीय होती है यह वर्षों तक कार्य करते हुए थकता नहीं है तथा Store Memory वर्षों बाद भी Accurate रहती हैं|

Limitations of Computer (कंप्यूटर की सीमाये)

Lack of Intelligence:-

Computer एक Machine है| इसका कार्य User द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन करना है Computer किसी भी स्थिति में न तो निर्देशों से अधिक और न ही इससे कम कार्य करता है Computer एक बिलकुल मुर्ख नौकर की तरह कार्य करता है इसे यदि आप कहे की जाओ और बाजार से सब्जी खरीद लो ऐसा निर्देश देने पर वह बाजार जायेगा और सब्जी भी ख़रीदेगा परन्तु सब्जी लेकर घर तक कभी नहीं लौटेगा | यहाँ प्रश्न उठता है- क्यों? इसका सीधा उत्तर है कि उससे आपने सब्जी खरीदने को अवश्य कहा पर उसे घर लाने को नहीं कहा | इसका अर्थ यह है कि Computer के अंदर सामान्य बोध नहीं होता हैं|
Unable in Self Protection:-
Computer चाहे कितना शक्तिशाली क्यों न हो परन्तु उसका नियंत्रण मानव के पास ही होता है Computer किसी भी प्रकार से आत्मरक्षा नहीं कर सकता है उदाहरण के लिए श्याम नामक किसी व्यक्ति ने एक ई-मेल अकाउंट बनाया तथा एक विशेष पासवर्ड उसने Account खोलने के लिए चुना | Computer यह नहीं देखता कि उस Account को खोलने वाला श्याम ही है या नहीं बल्कि वह देखता है कि Password क्या हैं|
Lack of Decision Making:-
Computer में निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती है क्योकि Computer एक बुद्धिमान मशीन नहीं है यह सही या गलत कि पहचान नहीं कर पाती है|
Types of Computer (कंप्यूटर के प्रकार)
Computer को तीन आधारों पर वर्गीकृत किया गया हैं|
1.             कार्यप्रणाली के आधार पर (Based on Mechanism)
2.             उद्देश्य के आधार पर (Based on Purpose)
3.             आकार के आधार पर (Based on Size)
Based on Mechanism:-  कार्यप्रणाली के आधार पर इन्हें तीन भागो Analog, Digital, and Hybrid में वर्गीकृत किया गया हैं|
·              Analog Computer:-
 Analog Computer वे Computer होते है जो भौतिक मात्राओ, जैसे- दाब (Pressure), तापमान (Tempressure), लम्बाई (Length), ऊचाई (Height) आदि को मापकर उनके परिमाप अंको में व्यक्त करते है ये Computer किसी राशि का परिमाप तुलना के आधार पर करते है जैसे- थर्मामीटर |
Analog Computer मुख्य रूप से विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में प्रयोग किये जाते है क्योकि इन क्षेत्रो में मात्राओ का अधिक उपयोग होता हैं| उदाहरणार्थ, एक पट्रोल पम्प में लगा Analog Computer, पम्प से निकले पट्रोल कि मात्रा को मापता है और लीटर में दिखाता है तथा उसके मूल्य कि गणना करके Screen पर दिखाता हैं|
·              Digital Computer:-
Digit का अर्थ होता है अंक | अर्थात Digital Computer वह Computer होता है जो अंको कि गणना करता है Digital Computer वे Computer है जो व्यापार को चलाते है, घर का वजट तैयार करते है औ प्रकार के Computer किसी भी चीज कि गणना करके “How Many” (मात्रा में कितना) के आधार पर प्रश्न का उत्तर देता हैं|
·              Hybrid Computer:-
Hybrid Computer का अर्थ है अनेक गुण धर्मो वाला होना | अत: वे Computer जिनमे Analog Computer or Digital Computer दोनों के गुण हो Hybrid Computer कहलाते है जैसे- पेट्रोल पम्प की मशीन भी एक Hybrid Computer हैं|
Based on Purpose:- Computer को उद्देश्य के आधार पर दो भागो में Special Purpose और General Purpose के आधार पर वर्गीकृत किया गया हैं|
·              Special Purpose:-
Special Purpose Computer ऐसे Computer है जिन्हें किसी विशेष कार्य के लिये तैयार किया जाता है इनके C.P.U. की क्षमता उस कार्य के अनुरूप होती है जिसके लिये इन्हें तैयार किया जाता हैं|जैसे- अन्तरिक्ष विज्ञान, मौसम विज्ञान, उपग्रह संचालन, अनुसंधान एवं शोध, यातायात नियंत्रण, कृषि विज्ञान, चिकित्सा आदि |
·              General Purpose:-
General Purpose Computer ऐसे Computer है जिन्हें सामान्य उद्देश्य के लिये तैयार किया गया है इन Computer में अनेक प्रकार के कार्य करने कि क्षमता होती है इनमे उपस्थित C.P.U. की क्षमता तथा कीमत कम होती हैं| इन Computers का प्रयोग सामान्य कार्य हेतु जैसे- पत्र (Letter) तैयार करना, दस्तावेज (Document) तैयार करना, Document को प्रिंट करना आदि के लिए किया जाता हैं|
Based on Size:-
Computer को आकार के आधार पर हम निम्न श्रेणियों में बाँट सकते है
·              Super Computer:-
ये सबसे अधिक गति वाले Computer व अधिक क्षमता वाले Computer हैं| इनमे एक से अधिक C.P.U. लगाये जा सकते है व एक से अधिक व्यक्ति एक साथ कार्य कर सकते हैं| ये Computer सबसे महँगे होते है व आकार में बहुत बड़े होते हैं|
·              Mini Computer:-
Micro Computer से कुछ अधिक गति व मेमोरी वाले Computer Mini Computer कहलाते है इनमे एक से अधिक C.P.U. हो सकते है व ये Micro Computer से महँगे होते हैं|मिनी Computer का उपयोग यातायात में यात्रियों के लिये आरक्षण-प्रणाली का संचालन और बैंको के बैंकिंग कार्यों के लिये होता हैं|
·              Main Frame Computer:-
Main Frame Computer, Mini Computer से कुछ अधिक गति व क्षमता वाले Computer Main Frame Computer कहलाते हैं|ये Computer आकार में बहुत बड़े होते है इनमे अत्यधिक मात्रा के Data पर तीव्रता से Process करने कि क्षमता होती है इसीलिए इनका उपयोग बड़ी कंपनियों, बैंको, रेल्वे आरक्षण, सरकारी विभाग द्वारा किया जाता हैं|
·              Micro Computer:-
इस Computer को Micro Computer दो कारणों से कहा जाता है पहला इस Computer में Micro Processor का प्रयोग किया जाता है दूसरा यह Computer दूसरे Computer कि अपेक्षा आकार में छोटा होता है Micro Computer आकार में इतना छोटा होता है कि इसको एक Study Table अथवा एक Briefcase में रखा जाता सकता हैं| यह Computer सामान्यतःसभी प्रकार के कार्य कर सकता है इसकी कार्य प्रणाली तो लगभग बड़े कंप्यूटर्स के सामान ही होती है परन्तु इसका आकार उनकी तुलना में कम होता हैं| इस Computer पर सामान्यतः एक ही व्यक्ति कार्य कर सकता हैं|
·              Desktop Computer:-
Desktop Computer एक ऐसा Computer है जिसे Desk पर सेट किया जाता है इसमें एक C.P.U., मोनिटर (Monitor), कि-बोर्ड (keyboard), तथा माउस (Mouse) होते हैं| इन्हें हम अलग अलग देख सकते हैं| Desktop Computer की कीमत कम होती है परन्तु इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना मुश्किल होता हैं|

 Basic Components of A Computer System/ Block Diagram

1.             Input Device:-
Input Device वे Device होते है जिनके द्वारा हम अपने डाटा या निर्देशों को Computer में Input करा सकते हैं| Computer में कई Input Device होते है ये Devices Computer के मस्तिष्क को निर्देशित करती है की वह क्या करे? Input Device कई रूप में उपलब्ध है तथा सभी के विशिष्ट उद्देश्य है टाइपिंग के लिये हमारे पास Keyboard होते है, जो हमारे निर्देशों को Type करते हैं|
Input Device वे Device है जो हमारे निर्देशों या आदेशों को Computer के मष्तिष्कसी.पी.यू. (C.P.U.) तक पहुचाते हैं|”
Input Device कई प्रकार के होते है जो निम्न प्रकार है
·              Keyboard
·              Mouse
·              Joystick
·              Trackball
·              Light pen
·              Touch screen
·              Digital Camera
·              Scanner
·              Digitizer Tablet
·              Bar Code Reader
·              OMR
·              OCR
·              MICR
·              ATM etc.
2.             C.P.U.:-
C.P.U का पूरा नाम सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit) हैं| इसका हिंदी नाम केन्द्रीय संसाधन इकाई होता हैं| यह Computer का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता हैं| अर्थात इसके बिना Computer सिस्टम पूर्ण नहीं हो सकता है, इससे सभी Device जुड़े हुए रहते है जैसे- Keyboard, Mouse, Monitor आदि | इसे Computer का मष्तिस्क (Mind) भी कहते है| इसका मुख्य कार्य प्रोग्राम (Programs) को क्रियान्वित (Execute) करना है इसके आलावा C.P.U Computer के सभी भागो, जैसे- Memory, Input, Output Devices के कार्यों को भी नियंत्रित करता हैं|
C.P.U (Central Processing Unit) के तीन भाग होते है
·              A.L.U.
·              Memory
·              C.U.
(a) A.L.U (Arithmetic Logic Unit):-
एरिथ्मेटिक एवं लॉजिक यूनिट को संक्षेप में A.L.U  कहते हैं| यह यूनिट डाटा पर अंकगणितीय क्रियाएँ (जोड़, घटाना, गुणा, भाग) और तार्किक क्रियायें (Logical operation) करती हैं| A.L.U Control Unit से निर्देश लेता हैं| यह मेमोरी (memory) से डाटा को प्राप्त करता है तथा Processing के पश्चात सूचना को मेमोरी में लौटा देता हैं| A.L.U के कार्य करने की गति (Speed) अति तीव्र होती हैं| यह लगभग 1000000 गणनाये प्रति सेकंड (Per Second) की गति से करता हैं| इसमें ऐसा इलेक्ट्रॉनिक परिपथ होता है जो बाइनरी अंकगणित (Binary Arithmetic) की गणनाएँ करने में सक्षम होता हैं|
 (b) Memory:-
यह Input Device के द्वारा प्राप्त निर्देशों को Computer में संग्रहण (Store) करके रखता है इसे Computer की याददाश भी कहाँ जाता है| मानव में कुछ बातों को याद रखने के लिये मष्तिस्क होता है, उसी प्रकार मेमोरी (Memory) हैं| यह मेमोरी C.P.U का अभिन्न अंग है, यह एक संग्राहक उपकरण (Storage Device) हैं| अतः इसे Computer की मुख्य मेमोरी (Main memory), आंतरिक मेमोरी (Internal Memory), या प्राथमिक मेमोरी (Primary Memory) भी कहते हैं|
“Computer का वह स्थान जहाँ सभी सूचनाओ, आकडों या निर्देशों को Store करके रखा जाता है मेमोरी कहलाती हैं|”
(c) C.U.:-
C.U. का पूरा नाम कंट्रोल यूनिट (Control Unit) होता हैं| C.U. हार्डवेयर कि क्रियाओ को नियंत्रित और संचालित करता हैं| यह Input, Output क्रियाओ को नियंत्रित (Control) करता है साथ ही Memory और A.L.U. के मध्य डाटा के आदान प्रदान को निर्देशित करता है यह प्रोग्राम (Program) को क्रियान्वित करने के लिये निर्देशों को मेमोरी से प्राप्त करता हैं| निर्देशों को विधुत संकेतों (Electric Signals) में परिवर्तित करके यह उचित डीवाइसेज तक पहुचता हैं|
3.             Output Device:-
Output Device वे Device होते है जो User द्वारा इनपुट किये गए डाटा को Result के रूप में प्रदान करते हैं |
Output Device के द्वारा कंप्यूटर से प्राप्त परिणामो (Result) को प्राप्त किया जाता है इन परिणामों को प्राय: डिस्प्ले डीवाइसेज (स्क्रीन) या प्रिंटर के द्वारा User को प्रस्तुत किया जाता हैं| मुख्य रूप से Output के रूप में प्राप्त सूचनाएं या तो हम स्क्रीन पार देख सकते है या प्रिंटर से पेज पर प्रिंट कर सकते है या संगीत सुनने के लिये आउटपुट के रूप में स्पीकर का उपयोग कर सकते हैं, Output Device कई प्रकार के होते है जैसे-
·              Monitor
·              Printer
·              Plotter
·              Projector
·              Sound Speaker
Memory (मेमोरी)
यह Device Input Device के द्वारा प्राप्त निर्देशों को Computer में संग्रहण (Store) करके रखता है इसे Computer की याददाश्त भी कहाँ जाता है| मानव में कुछ बातों को याद रखने के लिये मष्तिस्क होता है, उसी प्रकार Computer में डाटा को याद रखने के लिए मेमोरी (Memory)  होती हैं| यह मेमोरी C.P.U का अभिन्न अंग है,इसे Computer की मुख्य मेमोरी (Main memory), आंतरिक मेमोरी (Internal Memory), या प्राथमिक मेमोरी (Primary Memory) भी कहते हैं|
किसी भी निर्देश, सूचना, अथवा परिणामों को स्टोर करके रखना मेमोरी कहलाता हैं|”
कंप्यूटरो में एक से अधिक मेमोरी होती है हम उनको सामान्यतः प्राथमिक (Primary) व द्वितीयक (Secondary) मेमोरी के रूप में वर्गीकृत कर सकते है  प्राथमिक मेमोरी अस्थिर (Volatile) तथा स्थिर (Non-Volatile) दोनों प्रकार कि होती है| अस्थिर मेमोरी (Temprery Memory) डेटा को अस्थाई रूप से कंप्यूटर ऑन होने से लेकर कंप्यूटर बंद होने तक ही रखते है अर्थात कंप्यूटर अचानक बंद होने या बिजली के जाने पर कंप्यूटर से डाटा नष्ट हो जाता है स्थिर मेमोरी (Permanent Memory) आपके कंप्यूटर को प्रारंभ करने में सहायक होती हैं| इसमें कुछ अत्यंत उपयोगी फर्मवेयर होते है जो कंप्यूटर को बूट करने में मदद करते है बूटिंग कंप्यूटर को शुरू करने कि प्रक्रिया को कहा जाता है इसे मुख्य मेमोरी कहा जाता हैं| द्वितीयक संग्रहण वह है जो हमारे डाटा को लंबे समय तक रखता है द्वितीयक संग्रहण कई रूपों में आते हैं| फ्लोपी डिस्क, हार्ड डिस्क, सी.डी. आदि |
बिट अथवा बाइट:-  मेमोरी में स्टोर किया गया डाटा 0 या 1 के रूप में परिवर्तित हो जाता है 0 तथा 1 को संयुक्त रूप से बाइनरी डिजिट कहा जाता हैं| संक्षेप में इन्हें बिट भी कहा जाता हैं| यह बिट कंप्यूटर कि मेमोरी में घेरे गे स्थान को मापने की सबसे छोटी इकाई होती हैं|
8 Bits = 1 Bytes
1024 Bytes = 1 Kilobyte (1 KB)
1024 KB = 1 Megabyte (1MB)
1024 MB = 1 Gigabyte (1 GB)
1024 GB = 1 Terabyte (1 TB)
मेमोरी दो प्रकार की  होती हैं|
1.             प्राइमरी मेमोरी (Primary Memory)
2.             सेकंडरी मेमोरी (Secondary Memory)
Primary Memory:-
Memory कंप्यूटर का सबसे महत्वपूर्ण भाग है जहाँ डाटा, सूचना, एवं प्रोग्राम प्रक्रिया के दौरान उपस्थित रहते है और आवश्यकता पड़ने पर तत्काल उपलब्ध रहते है यह मेमोरी अस्थिर मेमोरी होती है क्योकि इसमें लिखा हुआ डाटा कंप्यूटर बंद होने या बिजली के जाने पर मिट जाता है प्राइमरी मेमोरी कहलाती हैं| इसे प्राथमिक मेमोरी या मुख्य मेमोरी भी कहते हैं|
प्राइमरी मेमोरी मुख्यतः दो प्रकार की होती है
रैम (RAM)
रोम (ROM)
RAM (Random Access Memory):- 
RAM  या Random Access Memory कंप्यूटर की अस्थाई मेमोरी (Temprery Memory) होती हैं| की-बोर्ड या अन्य किसी इनपुट डिवाइस से इनपुट किया गया डाटा प्रक्रिया से पहले रैम में ही संगृहीत किया जाता है और सी.पी.यू. द्वारा आवश्यकतानुसार वहाँ से प्राप्त किया जाता है रैम में डाटा या प्रोग्राम अस्थाई रूप से संगृहीत रहता है कंप्यूटर बंद हो जाने या विजली चले जाने पर रैम में संगृहीत (Store) डाटा मिट जाता हैं| इसलिए रैम को Volatile या अस्थाई मेमोरी कहते है रैम की क्षमता या आकार कई प्रकार के होते है जैसे कि- 4 MB, 8 MB, 16 MB, 32 MB, 64 MB, 128 MB, 256 MB आदि | रैम तीन प्रकार कि होती हैं|
1.             Dynamic RAM
2.             Synchronous RAM
3.             Static RAM
·              Dynamic RAM:- Dynamic RAM को संक्षिप्त में डीरैम (DRAM) कहा जाता हैं| रैम (RAM) में सबसे अधिक साधारण डीरैम (DRAM) है तथा इसे जल्दी जल्दी रिफ्रेश (Refresh) करने कि आवश्यकता पड़ती हैं| रिफ्रेश का अर्थ यहाँ पर चिप को विधुत अवशेषी करना होता है यह एक सेकंड में लगभग हजारों बार रिफ्रेश होता है तथा प्रत्येक बार रिफ्रेश होने के कारण यह पहले कि विषय वस्तु को मिटा देती है इसके जल्दी जल्दी रिफ्रेश होने के कारण इसकी गति (Speed) कम होती हैं|
·              Synchronous RAM:- Synchronous RAM  डीरैम(DRAM) कि अपेक्षा ज्यादा तेज हैं| इसकी तेज गति का कारण यह है कि यह सी.पी.यू. की घडी कि गति के अनुसार Refresh होती हैं| इसीलिए ये डीरैम कि अपेक्षा डाटा (Data) को तेजी से स्थानांतरित (Transfer) करता हैं|
·              Static RAM:- Static RAM ऐसी रैम है जो कम रिफ्रेश होती हैं| कम रिफ्रेश (Refresh) होने के कारण यह डाटा को मेमोरी में अधिक समय तक रखता हैं| डीरैम की अपेक्षा एस-रैम तेज तथा महँगी होती हैं|
ROM (Read only memory):- रोम का पूरा नाम रीड ऑनली मेमोरी होता हैं| यह स्थाई मेमोरी (Permanent memory) होती है जिसमे कंप्यूटर के निर्माण के समय प्रोग्राम Store कर दिये जाते हैं| इस मेमोरी में Store प्रोग्राम परिवर्तित और नष्ट नहीं किये जा सकते है, उन्हें केवल पढ़ा जा सकता हैं| इसलिए यह मेमोरी रीड ऑनली मेमोरी कहलाती हैंकंप्यूटर का स्विच ऑफ होने के बाद भी रोम में संग्रहित डाटा नष्ट नहीं होता हैं| अतः रोम नॉन-वोलेटाइल या स्थाई मेमोरी कहलाती हैं| रोम के विभिन्न प्रकार होते है जो निम्नलिखित है
1.             PROM (Programmable Read Only Memory)
2.             EPROM (Erasable Programmable Read Only Memory)
3.             EEPROM (Electrical Programmable Read Only Memory)
·              PROM:- PROM का पूरा नाम Programmable Read Only Memory होता है यह एक ऐसी मेमोरी है इसमें एक बार डाटा संग्रहित (Store) होने के बाद इन्हें मिटाया नहीं जा सकता और न ही परिवर्तन (Change) किया जा सकता हैं|
·              EPROM:- EPROM का पूरा नाम Erasable Programmable Read Only Memory होता है यह प्रोम (PROM) की तरह ही होता है लेकिन इसमें संग्रहित प्रोग्राम (Store Program) को पराबैगनी किरणों (Ultraviolet rays) के द्वारा ही मिटाया जा सकता है और नए प्रोग्राम संग्रहित (Store) किये जा सकते हैं|
·              EEPROM:- EEPROM का पूरा नाम Electrical Programmable Read Only Memory होता हैं| एक नई तकनीक इ-इप्रोम (EEPROM) भी है जिसमे मेमोरी से प्रोग्राम को विधुतीय विधि से मिटाया जा सकता हैं|
                                                             Mob no:- 9455066957
UNIT-2

Input Device
Input Device वे Device होते है जिनके द्वारा हम अपने डाटा या निर्देशों को Computer में Input करा सकते हैं| इनपुट डिवाइस कंप्यूटर तथा मानव के मध्य संपर्क की सुविधा प्रदान करते हैं| Computer में कई Input Device होते है ये Devices Computer के मस्तिष्क को निर्देशित करती है की वह क्या करे? Input Device कई रूप में उपलब्ध है तथा सभी के विशिष्ट उद्देश्य है टाइपिंग के लिये हमारे पास Keyboard होते है, जो हमारे निर्देशों को Type करते हैं|
Input Device वे Device है जो हमारे निर्देशों या आदेशों को Computer  के मष्तिष्कसी.पी.यू. (C.P.U.) तक पहुचाते हैं|”
Input Device कई प्रकार के होते है जो निम्न प्रकार है
·              Keyboard
·              Mouse
·              Joystick
·              Trackball
·              Light pen
·              Touch screen
·              Digital Camera
·              Scanner
·              Digitizer Tablet
·              Bar Code Reader
·              OMR
·              OCR
·              IMCR
·              ATM
की-बोर्ड (Keyboard)
की-बोर्ड कंप्यूटर का एक पेरिफेरल है जो आंशिक रूप से टाइपराइटर के की-बोर्ड की भांति होता हैं| की-बोर्ड को टेक्स्ट तथा कैरेक्टर इनपुट करने के लिये डिजाइन किया गया हैं| भौतिक रूप से, कंप्यूटर का की-बोर्ड आयताकार होता हैं| इसमें लगभग 108 Keys होती हैं| की-बोर्ड में कई प्रकार की कुंजियाँ (Keys) होती है जैसे- अक्षर (Alphabet), नंबर (Number), चिन्ह (Symbol), फंक्शन की (Function Key), एर्रो की (Arrow Key) व कुछ विशेष प्रकार की Keys भी होती हैं|
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 हम की-बोर्ड की संरचना के आधार पर इसकी कुंजियो को छ: भागो में बाँट सकते है-
1.             एल्फानुमेरिक कुंजियाँ (Alphanumeric Keys)
2.             न्यूमेरिक की-पैड (Numeric Keypad)
3.             फंक्शन की (Function Keys)
4.             विशिष्ट उददेशीय कुंजियाँ (Special Purpose Keys)
5.             मॉडिफायर कुंजियाँ (Modifier Keys)
6.             कर्सर कुंजियाँ (Curser Keys)
एल्फानुमेरिक कुंजियाँ (Alphanumeric Keys):- Alphanumeric Keys की-बोर्ड के केन्द्र में स्थित होती हैं| Alphanumeric Keys में Alphabets (A-Z), Number (0-9), Symbol (@, #, $, %, ^, *, &, +, !, = ), होते हैं| इस खंड में अंको, चिन्हों, तथा वर्णमाला के अतिरिक्त चार कुंजियाँ Tab, Caps, Backspace तथा Enter कुछ विशिष्ट कार्यों के लिये होती हैं|
न्यूमेरिक की-पैड (Numeric Keypad):- न्यूमेरिक की-पैड (Numeric Keypad) में लगभग 17 कुंजियाँ होती हैं| जिनमे 0-9 तक के अंक, गणितीय ऑपरेटर (Mathematic operators) जैसे- +, -. *, / तथा Enter key होती हैं |
फंक्शन की (Function Keys):- की-बोर्ड के सबसे ऊपर संभवतः ये 12 फंक्शन कुंजियाँ होती हैं| जो F1, F2……..F12 तक होती हैं| ये कुंजियाँ निर्देशों को शॉट-कट के रूप में प्रयोग करने में सहायक होती हैं| इन Keys के कार्य सॉफ्टवेयर के अनुरूप बदलते रहते हैं|
विशिष्ट उददेशीय कुंजियाँ (Special Purpose Keys):- ये कुंजियाँ कुछ विशेष कार्यों को करने के लिये प्रयोग की जाती है| जैसे- Sleep, Power, Volume, Start, Shortcut, Esc, Tab, Insert, Home, End, Delete, इत्यादि| ये कुंजियाँ नये ऑपरेटिंग सिस्टम के कुछ विशेष कार्यों के अनुरूप होती हैं|
मॉडिफायर कुंजियाँ (Modifier Keys):- इसमें तीन कुंजियाँ होती हैं, जिनके नाम SHIFT, ALT, CTRL हैं| इनको अकेला दबाने पर कोई खास प्रयोग नहीं होता हैं, परन्तु जब अन्य किसी कुंजी के साथ इनका प्रयोग होता हैं तो ये उन कुंजियो के इनपुट को बदल देती हैं| इसलिए ये मॉडिफायर कुंजी कहलाती हैं|
कर्सर कुंजियाँ (Cursor Keys):- ये चार प्रकार की Keys होती हैं UP, DOWN, LEFT तथा RIGHT | इनका प्रयोग कर्सर को स्क्रीन पर मूव कराने के लिए किया जाता है|
की-बोर्ड के प्रकार
साधारण कीबोर्ड (Normal Keyboard)
तार रहित की-बोर्ड (Wireless Keyboard)
अरगानोमिक की-बोर्ड (Ergonomic Keyboard)
साधारण कीबोर्ड:- साधारण कीबोर्ड वे कीबोर्ड होते हैं, जो सामान्य रूप से प्रयोग (Use) किये जाते हैं, जिसे User अपने PC में प्रयोग करता हैं | इसका आकार आयताकार होता है, इसमें लगभग 108 Keys होती हैं एवं इसे Computer से Connect करने के लिए एक Cable होती हैं जिसे CPU से जोडा  जाता हैं|
तार रहित की-बोर्ड:- तार रहित की-बोर्ड (Wireless Keyboard) प्रयोक्ता (User) को की- बोर्ड में तार के प्रयोग से छुटकारा दिलाता है | कुछ कंपनियों ने तार रहित की-बोर्ड का बाजार में प्रवेश कराया है| यह की-बोर्ड सीमित दूरी तक कार्य करता है| यह तार रहित की-बोर्ड थोडा महँगा होता है तथा इसमें थोड़ी तकनीकी जटिलता होती है| इसमें तकनीकी जटिलता होने के कारण इसका प्रचलन बहुत अधिक नहीं हो पाया है|
अरगानोमिक की-बोर्ड:- बहुत सारी कंपनियों ने एक खास प्रकार के की-बोर्ड का निर्माण किया है, जो प्रयोक्ता (User) को टाइपिंग करने में दूसरे की-बोर्ड की अपेक्षा आराम देता है| ऐसे की-बोर्ड अरगानोमिक की-बोर्ड (Ergonomic Keyboard)  कहलाते है ऐसे की-बोर्ड विशेष तौर पर प्रयोक्ता (User) की कार्य क्षमता बढाने के साथ साथ लगातार टाइपिंग करने के कारण उत्पन्न होने वाले कलाई (Wrist) के दर्द को कम करने में सहायता देता है |
माउस (Mouse)
वर्तमान समय में माउस सर्वाधिक प्रचलित Pointer Device है, जिसका प्रयोग चित्र या ग्राफिक्स (Graphics) बनाने के साथ साथ किसी बटन (Button) या मेन्यू (Menu) पर क्लिक करने के लिये किया जाता है | इसकी सहायता से हम की-बोर्ड का प्रयोग किये बिना अपने पी.सी. को नियंत्रित कर सकता है |
माउस में दो या तीन बटन होते है जिनकी सहायता से कंप्यूटर को निर्देश दिये जाते है| माउस को हिलाने पर स्क्रीन पर Pointer Move करता है| माउस के नीचे की ओर रबर की गेंद (Boll)  होती है| समतल सतह पर माउस को हिलाने पर यह गेंद घुमती है|
Mouse
माउस के कार्य:-
·              क्लिकिंग (Clicking)
·              डबल क्लिकिंग (Double Clicking)
·              दायाँ क्लिकिंग (Right Clicking)
·              ड्रैगिंग (Dragging)
·              स्क्रोलिंग (Scrolling)
माउस के प्रकार:- माउस प्रायः तीन प्रकार के होते है |
1.             मैकेनिकल माउस (Mechanical Mouse)
2.             प्रकाशीय माउस (Optical Mouse)
3.             तार रहित माउस (Cordless Mouse)
मैकेनिकल माउस (Mechanical Mouse): मैकेनिकल माउस (Mechanical Mouse) वे माउस होते है| जिनके निचले भाग में एक रबर की गेंद लगी होती है जब माउस को सतह पर घुमाते है तो वह उस खोल के अंदर घुमती है माउस के अंदर गेंद के घूमने से उसके अंदर के सेन्सर्स (Censors) कंप्यूटर को संकेत (Signal) देते है
प्रकाशीय माउस (Optical Mouse):- प्रकाशीय माउस (Optical Mouse) एक नये प्रकार का नॉन मैकेनिकल (non-mechanical) माउस है | इसमें प्रकाश की एक पुंज (किरण) इसके नीचे की सतह से उत्सर्जित होती है जिसके परिवर्तन के आधार पर यह ऑब्जेक्ट (Object) की दूरी, तथा गति तय करता है |
 तार रहित माउस (Cordless Mouse):- तार रहित माउस (Cordless Mouse) वे माउस है जो आपको तार के झंझट से मुक्ति देता है| यह रेडियो फ्रीक्वेंसी (Radio frequency) तकनीक की सहायता से आपके कंप्यूटर को सूचना कम्युनिकेट (Communicate) करता हैं| इसमें दो मुख्य कम्पोनेंट्स ट्रांसमीटर तथा रिसीवर होते है ट्रांसमीटर माउस में होता है जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक (Electromagnetic) सिग्नल (Signal) के रूप में माउस की गति तथा इसके क्लिक किये जाने की सूचना भेजता है रिसीवर जो आपके कंप्यूटर से जुड़ा होता है उस सिग्नल को प्राप्त करता है |
जॉयस्टिक (Joystick)
यह डिवाइस (Device) वीडियो गेम्स खेलने के काम आने वाला इनपुट डिवाइस (Input Device)  है इसका प्रयोग बच्चो द्वारा प्रायः कंप्यूटर पर खेल खेलने के लिये किया जाता है| क्योकि यह बच्चो को कंप्यूटर सिखाने का आसान तरीका है| वैसे तो कंप्यूटर के सारे खेल की-बोर्ड द्वारा खेले जा सकते है परन्तु कुछ खेल तेज गति से खेले जाते है उन खेलो में बच्चे अपने आप को सुबिधाजनक महसूस नहीं करते है इसलिए जॉयस्टिक का प्रयोग किया जाता है |
 Joystick
ट्रैकबाल (Trackball)
ट्रैक बोंल एक Pointing input Device है| जो माउस (Mouse) की तरह ही कार्य करती है | इसमें एक उभरी हुई गेंद होती है तथा कुछ बटन होते है| सामान्यतः पकड़ते समय गेंद पर आपका अंगूठा होता है तथा आपकी उंगलियों उसके बटन पर होती है| स्क्रीन पर पॉइंटर (Pointer) को घुमाने के लिये अंगूठा से उस गेंद को घुमाते है ट्रैकबोंल (Trackball) को माउस की तरह घुमाने की आवश्यकता नहीं होती इसलिये यह अपेक्षाकृत कम जगह घेरता है | इसका प्रयोग Laptop, Mobile तथा Remold में किया जाता हैं |
Trackball
 लाइट पेन (Light Pen)
लाइट पेन (Light Pen) का प्रयोग कंप्यूटर स्क्रीन पर कोई चित्र या ग्राफिक्स बनाने में किया जाता है लाइट पेन में एक प्रकाश संवेदनशील कलम की तरह एक युक्ति होती है| अतः लाइट पेन का प्रयोग ऑब्जेक्ट के चयन के लिये होता है| लाइट पेन की सहायता से बनाया गया कोई भी ग्राफिक्स कंप्यूटर पर संग्रहित किया जा सकता है तथा आवश्यकतानुसार इसमें सुधार किया जा सकता है |
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 टच स्क्रीन (Touch Screen)
टच स्क्रीन (Touch Screen) एक Input Device है| इसमें एक प्रकार की Display होती है| जिसकी सहायता से User किसी Pointing Device की वजह अपनी अंगुलियों को स्थित कर स्क्रीन पर मेन्यू या किसी ऑब्जेक्ट का चयन करता है| किसी User को कंप्यूटर की बहुत अधिक जानकारी न हो तो भी इसे सरलता से प्रयोग किया जा सकता है टच स्क्रीन (Touch Screen) का प्रयोग आजकल रेलवेस्टेशन, एअरपोर्ट, अस्पताल, शोपिंग मॉल, ए.टी.ऍम. इत्यादि में होने लगा है |
Touch Screen
बार-कोड रीडर (Bar code reader
बार-कोड रीडर (Bar code reader) का प्रयोग Product के ऊपर छपे हुए बार कोड को पढ़ने के लिये किया जाता है किसी Product के ऊपर जो Bar Code बार-कोड रीडर (Bar code reader) के द्वारा उत्पाद की कीमत तथा उससे सम्बंधित दूसरी सूचनाओ को प्राप्त किया जा सकता हैं|
BarCode Reader
 स्कैनर (Scanner)
स्केनर (Scanner) एक Input Device है ये कंप्यूटर में किसी Page पर बनी आकृति या लिखित सूचना को सीधे Computer में Input करता है इसका मुख्य लाभ यह है कि User को सूचना टाइप नहीं करनी पड़ती हैं|
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ओ.एम.आर. (OMR)
ओ.एम.आर. (OMR) या ऑप्टिकल मार्क रीडर (Optical Mark Reader) एक ऐसा डिवाइस है जो किसी कागज पर पेन्सिल या पेन के चिन्ह की उपस्थिति और अनुपस्थिति को जांचता है इसमें चिन्हित कागज पर प्रकाश डाला जाता है और परावर्तित प्रकाश को जांचा जाता है| जहाँ चिन्ह उपस्थित होगा कागज के उस भाग से परावर्तित प्रकाश की तीव्रता कम होगी | ओ.एम.आर. (OMR) किसी परीक्षा की उत्तरपुस्तिका को जाँचने के लिये प्रयोग की जाती है| इन परीक्षाओं के प्रश्नपत्र में वैकल्पिक प्रश्न होते हैं |
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 ओ.सी.आर. (OCR)
ऑप्टिकल कैरेक्टर रेकोग्निशन (Optical Character Recognition) अथवा ओ.सी.आर.(OCR) एक ऐसी तकनीक है | जिसका प्रयोग किसी विशेष प्रकार के चिन्ह, अक्षर, या नंबर को पढ़ने के लिये किया जाता है इन कैरेक्टर को प्रकाश स्त्रोत के द्वारा पढ़ा जा सकता हैं| ओ.सी.आर (OCR) उपकरण टाइपराइटर से छपे हुए कैरेक्टर्स, कैश रजिस्टर के कैरक्टर और क्रेडिट कार्ड के कैरेक्टर को पढ़ लेता हैं| ओ.सी.आर (OCR) के फॉण्ट कंप्यूटर में संग्रहित रहते है | जिन्हें ओ.सी.आर. (OCR) स्टैंडर्ड कहते हैं|
ए.टी.एम.(ATM)
स्वचालित मुद्रा यंत्र या ए.टी.एम. (Automatic Teller Machine) ऐसा यंत्र है जो हमे प्रायः बैंक में, शॉपिंग मौल में, रेलवे स्टेशन पर, हवाई अड्डों पर, बस स्टैंड पर, तथा अन्य महत्वपूर्ण बाजारों तथा सार्वजनिक स्थानों पर मिल जाता हैं| ए.टी.एम. की सहायता से आप पैसे जमा भी कर सकते है, निकाल भी सकते है, और बैलेंस भी चेक कर सकते है| ए.टी.एम. की सुबिधा 24 घंटे उपलब्ध रहती है|
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एम.आई.सी.आर.(MICR)
मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रिकोग्निशन (Magnetic Ink Character Recognition) व्यापक रूप से बैंकिंग में प्रयोग होता है, जहाँ लोगो को चेकों की बड़ी संख्या के साथ काम करना होता हैं| इसे संक्षेप में एम.आई.सी.आर.(MICR) कहाँ जाता हैं| एम.आई.सी.आर (MICR) का प्रयोग चुम्बकीय स्याही (Megnatic Ink) से छपे कैरेक्टर को पढ़ने के लिये किया जाता हैं| यह मशीन तेज व स्वचलित होतीहैं साथ ही इसमें गलतियां होने के अवसर बिल्कुल न के बराबर होते हैं|
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Output Device (आउटपुट डिवाइस)
आउटपुट डिवाइस (Output Device) हार्डवेयर (Hardware) का एक अवयव अथवा कंप्यूटर का मुख्य भौतिक भाग है जिसे छुआ जा सकता है, यह सूचना के किसी भी भाग तथा सूचना के किसी भी प्रकार जैसे ध्वनि (Sound), डाटा (Data), मेमोरी (Memory), आकृतियाँ (Layout) इत्यादि को प्रदर्शित कर सकता हैं आउटपुट डिवाइसो (Output Devices) में सामान्यतः मोनिटर (Monitor) प्रिंटर(Printer)  इयरफोन(Earphone) तथा प्रोजेक्टर(Projector) सम्मिलित है
 “वे उपकरण जिनके द्वारा कंप्यूटर से प्राप्त परिणामों को प्राप्त किया जाता है आउटपुट डिवाइसेज कहलाते हैं
आउटपुट डिवाइस कई प्रकार के होते है |
मॉनीटर (Monitor)
प्रिंटर (Printer)
प्लोटर (Plotter)
प्रोजेक्टर (Projector)
साउंड कार्ड (Sound Card)
इअर फोन(Ear phone)
मॉनीटर(Monitor:-
मॉनीटर(Monitor) एक ऐसा आउटपुट संयंत्र (Output Device) है जो टी.वी. जैसे स्क्रीन पर आउटपुट को प्रदर्शित करता है इसे विजुअल डिस्प्ले यूनिट (Visual Display Unit) भी कहते है मॉनीटर (Monitor) को सामान्यतः उनके द्वारा प्रदर्शित रंगों के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है-
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मोनोक्रोम (Monochrome):- यह शब्द दो शब्दों मोनो (Mono) अर्थात एकल (Single) तथा क्रोम (Chrome) अर्थात रंग (Color) से मिलकर बना है इसलिये इसे Single Color Display कहते हैतथा यह मॉनीटर आउटपुट को Black & White रूप में प्रदर्शित (Display) करता है|
ग्रे-स्केल (Gray-Scale):- यह मॉनीटर मोनोक्रोम जैसे ही होते हैं लेकिन यह किसी भी तरह के Display को ग्रे शेडस (Gray Shades) में प्रदर्शित (Show) करता हैं इस प्रकार के मॉनीटर अधिकतर हैंडी कंप्यूटर जैसे लैप टॉप (Laptop) में प्रयोग किये जाते हैं
रंगीन मॉनीटर (Color Monitors):- ऐसा मॉनीटर RGB (Red-Green-Blue) विकिरणों के समायोजन के रूप में आउटपुट को प्रदर्शित करता है सिद्धांत के कारण ऐसे मॉनीटर उच्च रेजोलुशन (Resolution) में ग्राफिक्स (Graphics) को प्रदर्शित करने में सक्षम होते हैं कंप्यूटर मेमोरी की क्षमतानुसार ऐसे मॉनीटर 16 से लेकर 16 लाख तक के रंगों में आउटपुट प्रदर्शित करने की क्षमता रखते हैं
प्रिंटर (Printer):-
प्रिंटर एक ऑनलाइन आउटपुट डिवाइस (Online Output Device) है जो कंप्यूटर से प्राप्त जानकारी को कागज पर छापता है कागज पर आउटपुट (Output) की यह प्रतिलिपि हार्ड कॉपी (Hard Copy) कहलाती है कंप्यूटर से जानकारी का आउटपुट (Output) बहुत तेजी से मिलता है और प्रिंटर (Printer) इतनी तेजी से कार्य नहीं कर पाता इसलिये यह आवश्यकता महसूस की गयी कि जानकारियों को प्रिंटर (Printer) में ही स्टोर (Store) किया जा सके इसलिये प्रिंटर (Printer) में भी एक मेमोरी (Memory) होती है जहाँ से यह परिणामों को धीरे-धीरे प्रिंट करता हैं
प्रिंटर (Printer) एक ऐसा आउटपुट डिवाइस (Output Device) है जो सॉफ्ट कॉपी (Soft Copy) को हार्ड कॉपी (Hard Copy) में परिवर्तित (Convert) करता हैं
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Plotter:-
Plotter एक आउटपुट डिवाइस हैं इससे चित्र (Drawing), चार्ट (Chart), ग्राफ (Graph) आदि को प्रिंट किया जा सकता हैं यह 3 D Printing भी कर सकते हैं इसके द्वारा बैनर पोस्टर आदि को प्रिंट किया जा सकता हैं
“Plotter एक ऐसा आउटपुट डिवाइस हैं जो चार्ट (chart), ग्राफ (Graph), चित्र (Drawing), रेखाचित्र (Map) आदि को हार्ड कॉपी पर प्रिंट करता हैं
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यह दो प्रकार के होते हैं
·              Drum pen Plotter
·              Flat bed Plotter
Sound Card & Speaker:-
साउंड कार्ड एक विस्तारक (Expansion) बोर्ड होता है जिसका प्रयोग साउंड को सम्पादित (Transacted) करने तथा Output देने के लिए किया जाता है कंप्यूटर में गाने सुनने फिल्म देखने या गेम खेलने के लिए इसका प्रयोग किया जाना आवश्यक होता है आजकल यह Sound Card मदर बोर्ड में पूर्व निर्मित (in built) होता हैं साउंड कार्ड तथा स्पीकर एक दूसरे के पूरक होते हैं साउंड कार्ड की सहायता से ही स्पीकर ध्वनि उत्पन्न करता हैं प्राय: सभी साउंड कार्ड MIDI (Musical Instrument Digital Interface) Support करते हैं मीडी संगीत को इलेक्ट्रोनिक रूप में व्यक्त करने का एक मानक हैं साउंड कार्ड दो तरीको से डिजिटल डाटा को एनालॉग सिग्नल में बदलता हैं|
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Projector:-
प्रोजेक्टर भी एक आउटपुट डिवाइस हैं प्रोजेक्टर का प्रयोग चित्र या वीडियो को एक प्रोजेक्शन स्क्रीन पर प्रदर्शित करके श्रोताओ को दिखाने के लिए किया जाता हैं|
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प्रोजेक्टर निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
1.             वीडियो प्रोजेक्टर     2. मूवी प्रोजेक्टर     3. स्लाइड प्रोजेक्टर


मॉनीटर (Monitor)
मॉनीटर(Monitor)
Monitor एक आउटपुट डिवाइस है। इसको विजुअल डिस्प्ले यूनिट भी कहा जाता है। यह देखने में टीवी की तरह होता है। माॅनीटर एक सबसे महत्वपूर्ण आउटपुट डिवाइस है। इसके बिना कम्प्यूटर अधूरा होता है। यह आउटपुट को अपनी स्क्रीन पर Soft Copy के रूप में प्रदर्शित करता है। माॅनिटर द्वारा प्रदर्शित रंगों के आधार पर यह तीन प्रकार के होते है।
मोनोक्रोम (Monochrome):-
यह शब्द दो शब्दों मोनो (Mono) अर्थात एकल (Single) तथा क्रोम (Chrome) अर्थात रंग (Color) से मिलकर बना है इसलिये इसे Single Color Display कहते है तथा यह मॉनीटर आउटपुट को Black & White रूप में प्रदर्शित (Display) करता है|
ग्रे-स्केल (Gray-Scale):-
यह मॉनीटर मोनोक्रोम जैसे ही होते हैं लेकिन यह किसी भी तरह के Display को ग्रे शेडस (Gray Shades) में प्रदर्शित (Show) करता हैं इस प्रकार के मॉनीटर अधिकतर हैंडी कंप्यूटर जैसे लैप टॉप (Laptop) में प्रयोग किये जाते हैं
रंगीन मॉनीटर (Color Monitors):- ऐसा मॉनीटर RGB (Red-Green-Blue) विकिरणों के समायोजन के रूप में आउटपुट को प्रदर्शित करता है सिद्धांत के कारण ऐसे मॉनीटर उच्च रेजोल्यूशन (Resolution) में ग्राफिक्स (Graphics) को प्रदर्शित करने में सक्षम होते हैं कंप्यूटर मेमोरी की क्षमतानुसार ऐसे मॉनीटर 16 से लेकर 16 लाख तक के रंगों में आउटपुट प्रदर्शित करने की क्षमता रखते हैं|
Types of Monitor (मोनीटर के प्रकार):-
·              CRT Monitor
·              Flat Panel Monitor
·              LCD (Liquid Crystal Display)
·              LED ( Light Emitting Diode)
CRT Monitor:-
CRT Monitor सबसे ज्यादा Use होने वाला Output Device हैं जिसे VDU (Visual display Unit) भी कहते हैं इसका Main Part cathode Ray tube होती हैं जिसे Generally Picture tube कहते हैं अधिकतर मॉनीटर में पिक्चर ट्यूब एलीमेंट होता है जो टी.वी. सेट के समान होता है यह ट्यूब सी.आर.टी. कहलाती है सी.आर.टी. तकनीक सस्ती और उत्तम कलर में आउटपुट प्रदान करती है CRT में Electron gun होता है जो की electrons की beam  और cathode rays को उत्सर्जित करती है ये Electron beam, Electronic grid से पास की जाती है ताकि electron की Speed को कम किया जा सके CRT Monitor की Screen पर फास्फोरस की Coding की जाती है इसलिए जैसे ही electronic beam Screen से टकराती है तो Pixel चमकने लगते हैं और Screen पर Image या Layout दिखाई देता हैं
LCD (Liquid Crystal Display):-
CRT Monitor बिलकुल टेलीविजन की तरह हुआ करते थे  Technology के विकास के साथ Monitor ने भी अपने रूप बदले और आज CRT Monitor के बदले LCD Monitor प्रचलन में आ गए है यह Monitor बहुत ही आकर्षित होते हैं Liquid Crystal Display को LCD के नाम से भी जाना जाता हैं यह Digital Technology हैं जो एक Flat सतह पर तरल क्रिस्टल के माध्यम से आकृति बनाता हैं यह कम जगह लेता है यह कम ऊर्जा लेता है तथा पारंपरिक Cathode ray tube Monitor की अपेक्षाकृत कम गर्मी पैदा करता हैं  यह Display सबसे पहले Laptop में Use होता था परन्तु अब यह स्क्रीन Desktop Computer के लिए भी प्रयोग हो रहा हैं
Flat panel Monitor:
CRT तकनीक के स्थान पर यह तकनीक विकसित की गयी जिसमे कैमीकल व गैसों को एक प्लेट में रखकर उसका प्रयोग Display में किया जाता है यह बहुत पतली स्क्रीन (Screen) होती है| flat Panel वजन में हल्की तथा बिजली की खपत कम करने वाली होती है इसमें द्रवीय क्रिस्टल डिस्प्ले (Liquid Crystal Display-LCD) तकनीक प्रयोग की जाती है LCD में CRT तकनीक की अपेक्षा कम स्पष्टता होती है इनका Use Laptop आदि में किया जाता हैं
मॉनीटर के लक्षण:-
किसी भी प्रकार के मॉनीटर के अंदर कुछ खास लक्षण होते है जिनके आधार पर ही इनके गुणवत्ता को परखा जाता है मॉनीटर के मुख्य लक्षण रेजोल्यूशन रिफ्रेश दर डोंट पिच इंटरलेसिंग नॉन इंटरलेसिंग बिट मेपिंग आदि है जिनके आधार पर इनकी गुणवत्ता को परखा जाता हैं
 रेजोल्यूशन (Resolution):-
मॉनीटर का महत्वपूर्ण गुण रेजोल्यूशन (Resolution) यह स्क्रीन (Screen) के चित्र (Picture) की स्पष्टता (Sharpness) को बताता है अधिकतर डिस्प्ले (Display) डिवाइसेज में चित्र (Image) स्क्रीन (Screen) के छोटे छोटे डॉट (Dots) के चमकने से बनते है स्क्रीन के ये छोटे छोटे डॉट (Dots) पिक्सल (Pixels) कहलाते है यहाँ पिक्सल (Pixels) शब्द पिक्चर एलीमेंट (Picture Element) का संक्षिप्त रूप है स्क्रीन पर जितने अधिक पिक्सल होगें स्क्रीन का रेजोल्यूशन (Resolution) भी उतना ही अधिक होगा अर्थात चित्र (Image) उतना ही स्पष्ट होगा एक डिस्प्ले रेजोल्यूशन (Resolution) माना 640*480 है तो इसका अर्थ है कि स्क्रीन 640 डॉट के स्तम्भ (Column) और 480 डॉट की पंक्तियों (Row) से बनी है|
Refresh Rate:- माॅनीटर लगातार कार्य करता रहता है । कम्प्यूटर स्क्रीन पर इमेज दायें से बायें एवं ऊपर से नीचे मिटती बनती रहती है। जो इलेक्ट्रान गन से व्यवस्थित होता रहता है। इसका अनुभव हम तभी कर पाते है जब स्क्रीन क्लिक करते  है या जब रिफ्रेश दर कम होती है । माॅनीटर में रिफ्रेश रेट को हर्टज में नापा जाता है।
Dot Pitch:- डाॅट पिच एक प्रकार की मापन तकनीकी है। जो यह प्रदर्शित करती है। की दो पिक्सल के मध्य horizontal अन्तर या दूरी कितनी है। इसका मापन मिलीमीटर में किया जाता है। यह माॅनीटर की गुणवत्ता को प्रदर्षित करता है। माॅनीटर में डाॅटपिच कम होना चाहिये। इसको फाॅस्फर पिच भी कहा जाता है। कलर माॅनीटर की डाॅट पिच 0.15 MM से .30 MM तक होती है।
Interlacing or non Interlacing:- यह एक ऐसी डिस्प्ले तकनीकी है। जो की माॅनीटर में रेजोल्यूशन की गुणवत्ता में और अधिक वृद्वि करती है। इन्टरलेसिंग माॅनीटर में इलेक्ट्रान गन केवल आधी लाईन खीचती थी क्योंकि इन्टरलेसिंग माॅनीटर एक समय में केवल आधी लाइन को ही रिफ्रेष करता है। यह माॅनीटर प्रत्येक रिफ्रेष साइकिल में दो से अधिक लाइनों को प्रदर्षित कर सकता है। इसकी केवल यह कमी थी कि इसका तमेचवदेम जपउम धीमा होता था।दोनों प्रकार के माॅनीटर की रेजोलूषन क्षमता अच्छी होती है। परन्तु नाॅन इन्टरलेसिंग माॅनीटर ज्यादा अच्छा होता है।
Bit Mapping:- पहले जो माॅनीटरस का प्रयोग किया जाता था उनमें केवल टेक्स को हो डिस्प्ले किया जा सकता था और इनकी पिक्सेल की संख्या सीमित होती थी। जिससे टेक्स का निमार्ण किया जाता था। ग्राफिक्स विकसित करने के लिये जो तकनीकी प्रयोग की गई जिसमें टेक्स और ग्राफिक्स दोनों को प्रदर्षित किया जा सकता हैं वह बिट मैपिंग कहलाती है। इस तकनीकी में बिट मैप ग्राफिक्स का प्रत्येक पिक्सेल आॅपरेट के द्वारा नियन्त्रित होता है। इससे आॅपरेटर किसी भी आकृति को स्क्रीन पर बनाया जा सकता है।
वीडियो मानक या डिस्प्ले पद्धति (Video Standard or Display Modes)
वीडियो मानक से तात्पर्य मॉनीटर में लगाये जाने वाले तकनीक से है| पर्सनल कंप्यूटर की वीडियो तकनीक में दिन प्रतिदिन सुधार आता जा रहा है| अब तक परिचित हुए मानकों में वीडियो स्टैंडर्ड के कुछ उदाहरण निम्नलिखित है
1.             कलर ग्राफिक्स अडैप्टर (Color graphics Adapter)
2.             इन्हैंन्स्ड ग्राफिक्स अडैप्टर (Enhanced Graphics Adapter)
3.             वीडियो ग्राफिक्स ऐरे (Video graphics Array)
4.             इक्स्टेण्डेड ग्राफिक्स ऐरे (Extended Graphics Array)
5.             सुपर वीडियो ग्राफिक्स ऐरे (Super Video graphics Array)
कलर ग्राफिक्स अडैप्टर (Color graphics Adapter):-
कलर ग्राफिक्स अडैप्टर (Color graphics Adapter) को संक्षिप्त में सी.जी.ए.(CGA) कहते है| इसका निर्माण 1981 में इंटरनेशनल बिजनेस मशीन (International business Machine) नामक कंपनी ने किया था यह डिस्प्ले (Display) चार रंगों को प्रदर्शित करने की क्षमता रखता था तथा प्रदर्शन क्षमता 320 पिक्सेल (Pixels) क्षेतिज (Horizontal) तथा 200 पिक्सेल (Pixels) उदग्र (Vertical) थी यह प्रणाली विंडोज के साधारण खेलो के लिए प्रयोग में आती थी यह ग्राफिक्स (Graphics) या इमेज (Image) के लिए पर्याप्त नहीं था
इन्हैंन्स्ड ग्राफिक्स अडैप्टर (Enhanced Graphics Adapter):-
इसका निर्माण भी इंटरनेशनल बिसनेस मशीन (International business Machine) ने सन् 1984 में किया था यह डिस्प्ले सिस्टम (Display System) 16 अलग-अलग रंगों को प्रदर्शित करता था इसकी प्रदर्शन क्षमता सी.जी.ए. (CGA) की अपेक्षा अधिक बेहतर यानि पिक्सल (Pixels) क्षैतिज (Horizontal) तथा पिक्सल उदग्र (Vertical) थी इस सिस्टम ने अपनी प्रदर्शन क्षमता को सी.जी.ए. (CGA) से और अधिक बेहतर बनाया यह डिस्प्ले सिस्टम टेक्स्ट (Text) की अपेक्षा अधिक आसानी से पढ़ सकता था इसके बावजूद ई.जी.ए. (EGA) अधिक क्षमता वाली ग्राफिक्स (Graphics) तथा डेस्कटॉप पब्लिशिंग (Desktop Publishing) के लिए उपयुक्त नहीं था
वीडियो ग्राफिक्स ऐरे (Video graphics Array):-
इसका निर्माण भी इंटरनेशनल बिसनेस मशीन (International business Machine) कंपनी द्वारा 1987 में किया गया था इसकी स्पष्टता इसमें प्रयोग किये जाने वाले रंगों (Colors) पर निर्भर होती थी इसमें 16 रंग (Color) 640*480 पिक्सेल (Pixels) पर व 256 रंग (Color) 320*200 पिक्सेल (Pixels) पर प्रयोग (Use) किये जा सकते हैं आजकल VGA मॉनीटर का प्रयोग बहुत अधिक मात्रा में किया जाता है
इक्स्टेण्डेड ग्राफिक्स ऐरे (Extended Graphics Array):-
इसका निर्माण भी इंटरनेशनल बिसनेस मशीन (International business Machine) कंपनी ने सन् 1990 में किया था इसमें 16 लाख रंगों (Colors) में 800*600 पिक्सेल का रेजोलुशन (Resolution) तथा 65536 मिलियन रंगों (Colors) में 1024*768 पिक्सेल (pixel) का रेजोलुशन (Resolution)  प्रदर्शित करता था
सुपर वीडियो ग्राफिक्स ऐरे (Super Video graphics Array):-
आजकल सभी PC कंप्यूटर में SVGA का प्रयोग किया जा रहा है यह मॉनीटर 1 करोड़ 60 लाख रंगों (Color) को प्रदर्शित (Display) करने की क्षमता रखता है छोटे आकार के SVGA Monitor 800 पिक्सेल (Pixel) क्षैतिज (Horizontal) तथा 600 पिक्सेल (Pixel) उदग्र (Vertical) प्रदर्शित करते हैं तथा बड़े आकार के SVGA  मॉनीटर 1280*1024 या 1600*1200 पिक्सेल (Pixel) रेजोलुशन (Resolution) प्रदर्शित (Display) करते हैं
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प्रिंटर (Printer)
प्रिंटर एक ऑनलाइन आउटपुट डिवाइस (Online Output Device) है जो कंप्यूटर से प्राप्त जानकारी को कागज पर छापता है कागज पर आउटपुट (Output) की यह प्रतिलिपि हार्ड कॉपी (Hard Copy) कहलाती है कंप्यूटर से जानकारी का आउटपुट (Output) बहुत तेजी से मिलता है और प्रिंटर (Printer) इतनी तेजी से कार्य नहीं कर पाता इसलिये यह आवश्यकता महसूस की गयी कि जानकारियों को प्रिंटर (Printer) में ही स्टोर (Store) किया जा सके इसलिये प्रिंटर (Printer) में भी एक मेमोरी (Memory) होती है जहाँ से यह परिणामों को धीरे-धीरे प्रिंट करता हैं|
प्रिंटर (Printer) एक ऐसा आउटपुट डिवाइस (Output Device) है जो सॉफ्ट कॉपी (Soft Copy) को हार्ड कॉपी (Hard Copy) में परिवर्तित (Convert) करता हैं|”
प्रिंटिंग विधि (Printing Method):- प्रिंटिंग (Printing) में प्रिंट करने की विधि बहुत महत्वपूर्ण कारक है प्रिंटिंग विधि (Printing Method) दो प्रकार की इम्पैक्ट प्रिंटिंग (Impact Printing)  तथा नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटिंग (Non-Impact Printing) होती है|
इम्पैक्ट प्रिंटिंग (Impact Printing):-
Impact Printer वे प्रिंटर होते हैं जो अपना Impact (प्रभाव) छोड़ते हैं जैसे टाइपराइटर प्रिंटिंग (Printing) की यह विधि टाइपराइटर (Typewriter) की विधि के समान होती है जिसमें धातु का एक हैमर (hammer) या प्रिंट हैड (Print Head) होता है जो कागज व रिबन (Ribbon) से टकराता है इम्पैक्ट प्रिंटिंग (Impact Printing) में अक्षर या कैरेक्टर्स ठोस मुद्रा अक्षरों (Solid Font) या डॉट मेट्रिक्स (Dot Matrix) विधि से कागज पर उभरते हैं Impact Printer की अनेक विधियाँ हैं| जैसे-
·              Dot Matrix Printer
·              Daisy Wheel Printer
·              line Printer
·              Chain Printer
·              Drum Printer etc.
 डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर (Dot Matrix Printer):- यह एक इम्पैक्ट प्रिंटर (Impact Printer) है अतः यह प्रिंटिंग करते समय बहुत शोर करता हैं इस प्रिंटर के प्रिंट हैड (Print Head) में अनेक पिनो (Pins) का एक मैट्रिक्स (Matrix) होता है और प्रत्येक पिन के रिबिन (Ribbon) और कागज (Paper) पर स्पर्श से एक डॉट (Dot) छपता हैं अनेक डॉट मिलकर एक कैरेक्टर बनाते (Character) है प्रिंट हैड (Print Head) में 7, 9, 14, 18 या 24 पिनो (Pins) का उर्ध्वाधर समूह (Horizontal Group) होता है एक बार में एक कॉलम की पिने प्रिंट हैड (Print Head) से बाहर निकलकर डॉट्स (Dots) छापती है जिससे एक कैरेक्टर अनेक चरणों (Steps) में बनता है और लाइन की दिशा में प्रिंट हैड आगे बढ़ता जाता है डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर (Dot Matrix Printer) की प्रिंटिंग गति (Printing Speed) 30 से 600 कैरेक्टर प्रति सेकंड (CPS-Character Per Second) होती हैं डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर (Dot Matrix Printer) में पूर्व निर्मित मुद्रा अक्षर (Font) नहीं होते हैं इसलिये ये विभिन्न आकार-प्रकार और भाषा के कैरेक्टर (Character) ग्राफिक्स (Graphics) आदि छाप सकता हैं यह प्रिंट हैड (Print Head) की मदद से कैरेक्टर बनाते है जो की कोड (0 और 1) के रूप में मेमोरी (Memory) से प्राप्त करते है प्रिंट हैड में इलेक्ट्रॉनिक सर्किट (Electronic Circuit) मौजूद रहता है जो कैरेक्टर को डिकोड (Decode) करता हैं इस प्रिंटर की प्रिंट क्वालिटी (Quality) अच्छी नहीं होती हैं|
डेजी व्हील प्रिंटर (Daisy Wheel Printer):- यह ठोस मुद्रा अक्षर (Solid Font) वाला इम्पैक्ट प्रिंटर (Impact Printer) है इसका नाम डेजी व्हील (Daisy Wheel) इसलिये दिया गया है क्योंकि इसके प्रिंट हैड की आकृति एक पुष्प गुलबहार (Daisy) से मिलती हैं डेजी व्हील प्रिंटर (Daisy Wheel Printer) धीमी गति का प्रिंटर है लेकिन इसके आउटपुट की स्पष्टता उच्च होती है इसलिये इसका उपयोग पत्र (Letter) आदि छापने में होता है और यह लैटर क्वालिटी प्रिंटर (Letter Quality Printer) कहलाता है इसके प्रिंट हैड (Print Head) में चक्र या व्हील (Wheel) होता है जिसकी प्रत्येक तान (Spoke) में एक कैरेक्टर (Character) का ठोस फॉण्ट (Solid Font) उभरा रहता हैव्हील कागज की क्षैतिज दिशा में गति करता है और छपने योग्य कैरेक्टर का स्पोक(Spoke) व्हील के घूमने से प्रिंट पोजीशन (Position) पर आता है एक छोटा हैमर (Hemmer) स्पोक रिबन (Ribbon) और कागज पर टकराता हैं जिससे अक्षर कागज पर छप जाता है इस प्रकार के प्रिंटर अब बहुत कम उपयोग में हैं|
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लाइन प्रिंटर (Line Printer):यह भी एक इम्पैक्ट प्रिंटर (Impact Printer) हैं बड़े कंप्यूटरों के लिए उच्च गति (High Speed) के प्रिंटरो की आवश्यकता होती है उच्च गति के प्रिंटर एक बार में एक कैरेक्टर छापने की बजाय एक लाइन पृष्ट को एक बार में छाप सकते है इनकी छापने की गति 300 से 3000 लाइन प्रति मिनिट (Line Per Minute) होती हैं ये प्रिंटर Mini Mainframe कंप्यूटर में बड़े कार्यों हेतु प्रयोग किये जाते है लाइन प्रिंटर (Line Printer) तीन प्रकार के होते हैं|
·              ड्रम प्रिंटर (Drum Printer)
·              चैन प्रिंटर (Chain Printer)
·              बैंड प्रिंटर (Band Printer)
ड्रम प्रिंटर (Drum Printer):- ड्रम प्रिंटर (Drum Printer)  में तेज घूमने वाला एक ड्रम (Drum) होता है जिसकी सतह पर अक्षर (Character) उभरे रहते हैं एक बैंड (Band) पर सभी अक्षरों का एक समूह (Set) होता हैं, ऐसे अनेक बैंड सम्पूर्ण ड्रम पर होते हैं जिससे कागज पर लाइन की प्रत्येक स्थिति में कैरेक्टर छापे जा सकते हैं ड्रम तेजी से घूमता हैं और एक घूर्णन (Rotation) में एक लाइन छापता है एक तेज गति का हैमर (Hammer) प्रत्येक बैंड के उचित कैरेक्टर पर कागज के विरुद्ध टकराता हैं और एक घूर्णन पूरा होने पर एक लाइन छप जाती हैं|
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चेन प्रिंटर (Chain Printer):- इस प्रिंटर में तेज घूमने वाली एक चेन (Chain) होती है जिसे प्रिंट चेन (Print Chain) कहते हैं चेन में कैरेक्टर छपे होते है प्रत्येक कड़ी (Link)  में एक कैरेक्टर का फॉण्ट (Font) होता हैं प्रत्येक प्रिंट पोजीशन (Print Position) पर हैमर (Hammer) लगे होते हैं  जिससे हैमर (Hammer) कागज पर टकराकर एक बार में एक लाइन प्रिंट करता हैं|
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बैंड प्रिंटर (Band Printer):- यह प्रिंटर चेन प्रिंटर (Chain Printer) के समान कार्य करता है इसमें चेन (Chain) के स्थान पर स्टील का एक प्रिंट बैंड (Print Band) होता है इस प्रिंटर में भी हैमर (Hammer) एक बार में एक लाइन प्रिंट करता हैं|
BANDPRNT
नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटिंग (Non-Impact Printing):-
नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटिंग (Non-Impact Printing) में प्रिंट हैड (Print Head) या कागज (paper) के मध्य संपर्क नहीं होता है इसमें लेजर प्रिंटिंग (Lager Printing) द्वारा तकनीक दी जाती है इसलिये इसकी Quality High होती है Non-Impact Printer की अनेक विधियाँ हैं जैसे-
·              Laser Printer
·              Photo Printer
·              Inkjet Printer
·              Portable Printer
·              Multifunctional Printer
·              Thermal Printer.
लेजर प्रिंटर (Lager printer):- लेजर प्रिंटर (Lager printer) नॉन इम्पैक्ट पेज प्रिंटर हैं लेजर प्रिंटर का प्रयोग कंप्यूटर सिस्टम में 1970 के दशक से हो रहा हैं पहले ये Mainframe Computer में प्रयोग किये जाते थे  1980 के दशक में लेजर प्रिंटर का मूल्य लगभग 3000 डॉलर था ये प्रिंटर आजकल अधिक लोकप्रिय हैं क्योकि ये अपेक्षाकृत अधिक तेज और उच्च क्वालिटी में टेक्स्ट और ग्राफिक्स  छापने में सक्षम हैं अधिकांश लेजर प्रिंटर (Laser Printe) में एक अतिरिक्त माइक्रो प्रोसेसर(Micro Processor) रेम (Ram) व रोम (Rom) का प्रयोग (use) किया जाता है यह प्रिंटर भी डॉट्स (dots) के द्वारा ही कागज पर प्रिंट (print) करता है परन्तु ये डॉट्स (dots) बहुत ही छोटे व पास-पास होने के कारण बहुत सपष्ट प्रिंट (print) होते है इस प्रिंटर में कार्टरेज का प्रयोग किया जाता है जिसके अंदर सुखी स्याही (Ink Powder) को भर दिया जाता हैं लेजर प्रिंटर के कार्य करने की विधि मूलरूप से फोटोकॉपी मशीन की तरह होती है लेकिन फोटोकॉपी मशीन में तेज रोशनी का प्रयोग किया जाता है लेजर प्रिंटर )Laser Printer) 300 से लेकर 600 DPI  (Dot Per Inch) तक या उससे भी अधिक रेजोलुशन की छपाई करता है रंगीन लेजर प्रिंटर उच्च क्वालिटी का रंगीन आउटपुट देता हैं इसमें विशेष टोनर होता है जिसमे विभिन्न रंगों के कण उपलब्ध रहते हैं  यह प्रिंटर बहुत महंगे होते है क्योकि इनके छापने की गति उच्च होती हैं तथा यह प्लास्टिक की सीट या अन्य सीट पर आउटपुट (output) को प्रिंट (print) कर सकते है|
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लेजर प्रिंटर की विशेषताए :-
·              उच्च रेजोलुशन
·              उच्च प्रिंट गति
·              बड़ी मात्रा में छपाई के लिए उपयुक्त
·              कम कीमत प्रति प्रष्ट छपाई
लेजर प्रिंटर की कमियां
·              इंकजेट प्रिंटर से अधिक महगां
·              टोनर तथा ड्रम का बदलना महगां
·              इंकजेट प्रिंटर से बड़ा तथा भारी
थर्मल ट्रांसफर प्रिंटर (Thermal Transfer Printer) – यह एक ऐसी तकनीक है जिसमे कागज पर wax आधारित रिबन से अक्षर प्रिंट (Print) किये जा सकते है इस प्रिंटर के द्वारा किया गया प्रिंट ज्यादा समय के लिए स्थित नहीं रहता अर्थात कुछ समय बाद प्रिंट किया गया Matter पेपर से मिट जाता हैं सामान्यतः इन प्रिंटरो का प्रयोग ATM मशीन में किया जाता हैं|
Direct thermal printers
फोटो प्रिंटर (Photo Printer) – फोटो प्रिंटर एक रंगीन प्रिंटर होता है जो फोटो लैब की क्वालिटी फोटो पेपर पर छापते हैं इसका इस्तेमाल डॉक्युमेंट्स की प्रिंटिंग के लिए किया जा सकता है इन प्रिंटरो के पास काफी बड़ी संख्या में नॉजल होते है जो काफी अच्छी क्वालिटी की इमेज के लिए बहुत अच्छे स्याही के बूंद छापता है|
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कुछ फोटो प्रिंटर में मिडिया कार्ड रिडर भी होते है ये 4×6 फोटो को सीधे डिजिटल कैमरे के मिडिया कार्ड से बिना किसी कंप्यूटर के प्रिंट कर सकता है ज्यादातर इंकजेट प्रिंटर और उच्च क्षमता वाले लेजर प्रिंटर उच्च क्वालिटी की तस्वीरे प्रिंट करने में सक्षम होते हैं कभी कभी इन प्रिंटरो को फोटो प्रिंटर के रूप में बाजार में लाया जाता है बड़ी संख्या में नॉजल तथा बहुत अच्छे बूंदों के अतिरिक्त इन प्रिंटरो में अतिरिक्त फोटो स्यान (cyan) हल्का  मैजेंटा (magenta) तथा हल्का काला (black) रंगों में रंगीन कर्टेज होता है ये अतिरिक्त रंगीन कार्टेज को सहायता से अधिक रोचक तथा वास्तविक दिखने जैसा फोटो छापते है इसका परिणाम साधारण इंकजेट तथा लेजर प्रिंटर से बेहतर होता है|
इंक जेट प्रिंटर (Inkjet Printer) – यह Non Impact Printer है जिसमे एक Nozzle (नोजल) से कागज पर स्याही की बूंदो की बौछार करके कैरेक्टर व ग्राफिक्स प्रिंट किये जाते है इस प्रिंटर का आउटपुट बहुत स्पष्ट होता हैक्योंकि इसमें अक्षर का निर्माण कई डॉट्स से मिलकर होता हैं रंगीन इंकजेट प्रिंटर में स्याही के चार नोजल होते है नीलम लाल पीला काला इसलिए इसको CMYK प्रिंटर भी कहा जाता हैं तथा ये चारो रंग मिलकर किसी भी रंग को उत्पन्न कर सकते है इसलिए इनका प्रयोग (use) सभी प्रकार के रंगीन प्रिंटर (Colored Printer) में किया जाता है|
इस प्रिंटर में एक मुख्य समस्या है कि इसके प्रिंट हैड में इंक क्लौगिंग (Ink Clogging) हो जाती है यदि इससे कुछ समय तक प्रिंटिंग ना कि जाये तो। इसके नोजल के मुहाने पर स्याही जम जाती है। जिससे इसके छिद्र बंद हो जाते है। इस समस्या को इंक क्लिोंगिग कहा जाता है। आजकल इस समस्या को हल कर लिया गया है। इसके अलावा इस प्रिंटर की प्रिंटिंग पर यदि नमी आ जाये तो इंक फैल जाती है। इसकी प्रिंटिंग क्वालिटी प्रायः 300 Dot Per Inch होती हैं|
पोर्टेबल प्रिंटर (Portable Printer) – पोर्टेबल प्रिंटर छोटे कम वजन वाले इंकजेट या थर्मल प्रिंटर होते है जो लैपटॉप कंप्यूटर द्वारा यात्रा के दौरान प्रिंट निकलने की अनुमति देते है यह ढोने में आसान इस्तेमाल करने में सहज होते है मगर कापैक्ट डिज़ाइन की वजह से सामान्य इंकजेट प्रिंटरो के मुकाबले महंगे होते है| इनकी प्रिंटिंग की गति भी सामान्य प्रिंटर से कम होती है कुछ प्रिंट डिजिटल कैमरे से तत्काल फोटो निकालने के लिए इस्तेमाल किये जाते है इसलिए इन्हें पोर्टेबल फोटो प्रिंटर कहा जाता है|
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मल्टीफंक्शनल/ऑल इन वन प्रिंटर (Multifunctional / All in one Printer) – ऐसा प्रिंटर जिसके द्वारा हम किसी Document को Scan कर सकते हैं उसे प्रिंट कर सकते है तथा प्रिंट करने के बाद फैक्स भी कर सकते हैं उसे मल्टीफंक्शनल प्रिंटर कहा जाता हैं मल्टीफंक्शनल/ऑल इन वन प्रिंटर को मल्टीफंक्शनल डिवाइस (Multi Function Device) भी कहा जाता है यह एक ऐसी मशीन है जिसके द्वारा कई मशीनों के कार्य जैसे प्रिंटर स्कैनर कॉपीयर तथा फैक्स किये जा सकते है मल्टीफंक्शन प्रिंटर घरेलु कार्यालयों (Home Offices) में बहुत लोकप्रिय होता हैं इसमें इंकजेट या लेजर प्रिंट विधि का प्रयोग हो सकता है कुछ मल्टीफंक्शन प्रिंटरो में मिडिया कार्ड रिडर का प्रयोग होता है जो डिजिटल कैमरा से कंप्यूटर के प्रयोग के बगैर सीधे-सीधे इमेज छाप सकता है|
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Plotter
Plotter एक आउटपुट डिवाइस हैं इससे चित्र (Drawing), चार्ट (Chart), ग्राफ (Graph) आदि को प्रिंट किया जा सकता हैं यह 3 D Printing भी कर सकते हैं इसके द्वारा बैनर पोस्टर आदि को प्रिंट किया जा सकता हैं|
“Plotter एक ऐसा आउटपुट डिवाइस हैं जो चार्ट (chart), ग्राफ (Graph), चित्र (Drawing), रेखाचित्र (Map) आदि को हार्ड कॉपी पर प्रिंट करता हैं
यह दो प्रकार के होते हैं|
·              Drum pen Plotter
·              Flat bed Plotter
Drum Pen Plotter
यह एक ऐसा Plotter हैं जिसमे आकृति बनाने के लिए पेन का प्रयोग किया जाता हैं पेन के द्वारा कागज पर चित्र या आकृति का निर्माण किया जाता है इस डिवाइस में कागज एक ड्रम के ऊपर चढ़ा रहता हैं जो धीरे धीरे खिसकता जाता है और पेन प्रिंट करता जाता हैं यह एक मैकेनिकल कलाकार की तरह कार्य करता हैं कई Drum Pen Plotter में Fiber Tipped pen का प्रयोग होता है यदि उच्च क्वालिटी की आवश्यकता हो तो Technical Drafting Pen का प्रयोग किया जाता हैं कई रंगीन प्लॉटर में चार या चार से अधिक पेन होते हैं प्लॉटर एक आकृति को इंच प्रति सेकंड में प्रिंट करता हैं|
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Flat bed Plotter
फ्लैट बेड प्लॉटर में कागज को स्थिर अवस्था में एक बेड या ट्रे में रखा जाता हैं इसमें एक भुजा पर पेन लगा रहता हैं जो मोटर से कागज पर ऊपर-नीचे (Y-अक्ष) और दाये-बाये (X-अक्ष) पर घूमकर चित्र या आकृति का निर्माण करता हैं इसमें पेन कंप्यूटर से नियंत्रित होता हैं|
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डाटा अभिगमन विधियाँ (Data Access Methods)
डाटा अभिगमन विधियाँ (Data Access Methods)
1.             सीधे अभिगमन (Direct Access)
2.             क्रमिक एक्सेस (Sequential Access)
3.             इंडेक्स सिक्वेंशियल अभिगमन (Index Sequential Access)
सीधे अभिगमन विधि (Direct Access Method)–
Direct Access Method में डाटा को किसी भी क्रम में प्राप्त किया जा सकता है एवं किसी भी क्रम में डाटा को स्टोर किया जा सकता हैं | इसकी डाटा एक्सेस करने की गति सीरियल एक्सेस (Sequential Access) विधि की तुलना में अधिक होती हैं| सीधे अभिगमन (Direct Access) की आवश्यकता वहाँ अधिक होती है जहाँ आंकड़ो को किसी भी क्रम में प्राप्त करना पड़ जाता है|
उदाहरण- ग्रामोफोन, ऑडियो कैसेट्स |
क्रमिक एक्सेस विधि (Sequential Access Method)–
इस क्रिया में Storage Data को उसी क्रम में एक्सेस किया जाता है जिस क्रम में डाटा स्टोर किया जाता हैं इस क्रिया को सीरियल एक्सेस विधि भी कहा जाता है | इनका प्रयोग उन संस्थानों में होता हैं जहाँ पर अधिक मात्रा में डाटा को स्टोर किया जाता हैं और उसको उसी क्रमानुसार काम में लिया जाता है | पुराने समय में प्रयोग होने वाली ऑडियो और वीडियो टेप कैसेट में इसी विधि का प्रयोग डाटा को एक्सेस करने के लिए किया जाता था | बड़ी-बड़ी कंपनियों में डाटा का बैकअप लेने के लिए एवं उसको एक्सेस करने के लिए किया जाता हैं |
इंडेक्स सिक्वेंशियल अभिगमन विधि (Index Sequential Access Method)–
इसमें Direct Access तथा Sequential Access Method दोनों का जोड़ होता है इसमें डाटा को Sequentially स्टोर किया जाता है तथा उस डाटा को हम किसी भी क्रम में प्राप्त कर सकते है क्योकि इसमें डाटा को स्टोर करते समय एक इंडेक्स तैयार हो जाती है इस इंडेक्स में उस डाटा का सही पता मौजूद होता हैं, जिसकी सहायता से हम उस डाटा को देख सकते हैं यह किताब में इंडेक्स पेज की तरह होता हैं | इससे डाटा का पता खोजने में ज्यादा समय नष्ट नहीं होता हैं |
उदाहरण के रूप में डाक्टर शर्मा का कमरा पता करने के लिए बिल्डिंग की डायरेक्ट्री या इंडेक्स (Index) देखेंगे तथा उनकी मंजिल और कमरे का नंबर ज्ञात करेंगे| इस तरीके में सरे रिकॉर्ड क्रम से लगे होते है तथा इंडेक्स तालिका (Index Table) का प्रयोग सारे रेकॉर्ड्स जल्दी प्राप्त करने के लिए किया जाता है| इस तरीके में रिकॉर्ड तो किसी भी प्रकार से स्टोर कराया जा सकता है परन्तु सरे रिकॉर्ड इंडेक्स तालिका में क्रमानुसार लगे होते है|

 Secondary Memory
Secondary Storage Device को Auxiliary Storage Device भी कहा जाता है। यह कम्प्यूटर का भाग नही होती है। इसको कम्प्यूटर में अलग से जोडा जाता है। इसमें जो डाटा स्टोर किया जाता है। वह स्थाई होता है। अर्थात् कम्प्यूटर बंद होने पर इसमें स्टोर डाटा डिलीट नही होता है। आवश्यकता के अनुसार इसको भविष्य में इसमें सेव फाईल या फोल्डरों को खोल कर देख सकते है। या इसमें सुधार कर सकते है। एवं इसको यूजर के द्वारा डिलिट भी किया जा सकता है। इसकी Storage क्षमता अधिक होती है Secondary Storage Device में Primary memory की अपेक्षा कई गुना अधिक डाटा स्टोर करके रख सकते हैं, जो की स्थानांतरणीय (Transferable) होता हैं एवं डाटा को ऐक्सेस करने कि गति Primary Memory से धीमी होती है। Secondary Memory में फ्लॉपी डिस्क, हार्डडिस्क, कॉम्पेक्ट डिस्क, ऑप्टिकल डिस्क, मेमोरी कार्ड, पेन ड्राइव आदि आते हैं|
Hard Drive:-
Hard Disk या HDD एक ही बात है, ये एक physical disk होती है जिसको हम अपने computer की सभी छोटी बड़ी files store करने के लिये प्रयोग करते है। Hard disk और RAM मे ये फर्क होता है कि, Hard disk वो चीज है जो store करने के काम मे आती है, लेकिन RAM उस storage मे रखी चीजो को चलाने के काम में आती है। जब हम computer को बन्‍द करते है तो RAM मे पडी कोई भी चीज साफ हो जाती है। लेकिन HDD मे computer बन्‍द होने पर भ्‍ाी data erase नही होता।
Hard disk के अन्‍दर एक disk घुमती है, जितनी तेज disk घुमती है उतनी ज्‍यादा तेजी से ये Data को store या read कर सकती है। Hard disk के घुमने की speed को हम RPM (Revolutions Per Minute) मे नापते है। ज्‍यादातर Hard disk 5400 rpm या 7200 rmp की होती है, जाहिर सी बात है 7200 rmp की hard disk 5400 rmp वाली से ज्‍यादा तेज होती है।
Harddisk
संरचना एवं कार्यविधिः- हार्डडिस्क चुम्बकीय डिस्क से मिलकर बनी होती है। इसमें डाटा को पढ़ने एवं लिखने के लिये एक हेड होता है। हार्डडिस्क में एक central shaft  होती है। जिसमें चुम्बकीय डिस्क लगी रहती है। हार्डडिस्क की ऊपरी सतह पर एवं निचली सतह पर डाटा को स्टोर नहीं किया जाता है। बाकि सभी सतहों पर डाटा को स्टोर किया जाता है। डिस्क की प्लेट में Track and Sector होते है। सेक्टर में डाटा स्टोर होता है, एक सेक्टर में 512 बाइट डाटा स्टोर होता है।
डाटा को स्टोर एवं पढ़ने के लिये तीन तरह के समय लगते है। जो निम्न है।
1. Seek Time:-.
डिस्क में डाटा को रीढ या राईट करने वाले Track तक पहुँचने में  लगा समय सीक टाइम कहलाता है।
2. Latency time:- Track
में डाटा के Sector तक पहुँचने मे लगा समय लेटेंसी टाईम कहलाता है।
3. Transfer Rate:- Sector
में डाटा को लिखने एवं पढने में जो समय लगता है। उसे Transfer Rate कहा जाता है।
फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disk) :-
यह प्लास्टिक की बनी होती है जिस पर फेराइट की परत पड़ी रहती है | यह बहुत लचीली प्लास्टिक की बनी होती है| इसलिए इसे फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disk) कहते है| जिस पर प्लास्टिक का कबर होता है| जिसे जैकेट कहते है| फ्लॉपी (Floppy) के बीचों-बीच एक पॉइंट (Point) बना होता है जिससे इस ड्राइव (Drive) की डिस्क (Disk) घूमती है| इसी फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disk) में 80 डेटा ट्रेक (Data track) होते है और प्रत्येक ट्रेक (Track) में 64 शब्द स्टोर (Store) किये जा सकते है| यह मेग्नेटिक  टेप (Magnetic tape) के सामन कार्य करती है| जो 360 RPM प्रति मिनिट की दर से घूमती है| जिससे इसकी Recording head के ख़राब हो जाने की समस्या उत्पन्न होती है|
floppy
आकर की द्रष्टि से फ्लॉपी (Floppy) दो प्रकार की होती है :-
व्यास वाली फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disk)
व्यास वाली फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disk)
5½ व्यास वाली फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disk) – इसका अविष्कार सन 1976 में किया गया था तथा यह भी प्लास्टिक की जैकेट से सुरक्षित रहती है| इसकी संग्रह क्षमता 360 KB से 2.44 MB तक की होती है |
3½ व्यास वाली फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disk) – इसका प्रयोग (use) सर्वप्रथम एप्पल कंप्यूटर (Apple computer) में किया गया था| जो पिछली फ्लॉपी की अपेक्षा छोटी होती है| इसकी संग्रह क्षमता 310 KB से 2.88 MB तक होती है|
Magnetic Tape:-
Magnetic tape भी एक Storage Device हैं जिसमे एक पतला फीता होता हैं जिस पर Magnetic Ink की Coading की जाती हैं इसका प्रयोग Analog तथा Digital Data को Store करने के लिए किया जाता हैं | यह पुराने समय के Audio कैसिट की तरह होता हैं Magnetic Tape का प्रयोग बड़ी मात्रा में डाटा Store करने के लिए किया जाता हैं| यह सस्ते होते हैं| आज भी इसका प्रयोग data का Backup तैयार करने के लिए किया जाता हैं |
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Optical Disk
Optical Disk एक चपटा, वृत्ताकार पोलिकर्बिनेट डिस्क होता है, जिस पर डाटा एक Flat सतह के अन्दर Pits के रूप में Store किया जाता हैं इसमें डाटा को Optical के द्वारा Store किया जाता है|
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आॅपटिकल डिस्क दो प्रकार की होती है।
CD:- सबसे पहले बात करते है सीडी की, सीडी का हम काम्‍पैक्‍ट डिस्‍क के नाम से भी पुकारते हैं ये एक ऐसा ऑप्‍टिकल मीडियम होता है जो हमारे डिजिटल डेटा का सेव करता है। एक समय था जब हम रील वाले कैसेट प्रयोग करते थी, सीडी के अर्विष्‍कार ने ही बाजार में कैसेटों को पूरी तरह से खत्‍म कर दिया। एक स्‍टैंडर्ड सीडी में करीब 700 एमबी का डेटा सेव किया जा सकता है। सीडी में डेटा डॉट के फार्म में सेव होता है, दरअसल सीडी ड्राइव में लगा हुआ लेजर सेंसर सीडी के डॉट से रिफलेक्‍ट लाइट का पढ़ता है और हमारी डिवाइस में इमेज क्रिएट करता है।
DVD:-
डीवीडी यानी डिजिटल वर्सटाइल डिस्‍क, सीडी के बाद डीवीडी का आगाज हुआ वैसे तो देखने में दोनों सीडी और डीवीडी दोनों एक ही जैसे लगते है मगर इनकी डेटा कैपसेटी में अंतर होता है सीडी के मुकाबले डीवीडी में ज्‍यादा डेटा सेव किया जा सकता है। मतलब डीवीडी में यूजर करीब 4.7 जीबी से लेकर 17 जीबी तक डेटा सेव कर सकता है। डीवीडी के आने के बाद बाजार में सीडी की मांग में भारी कमी देखी गई।
Flash Drive
Pen Drive को ही Flash Drive के नाम से जाना जाता हैं आज कल सबसे ज्यादा Flash Drive का Use डाटा Store करने के लिए किया जाता है यह एक External Device है जिसको Computer में अलग से Use किया जाता हैं | यह आकार में बहुत छोटे तथा हल्की भी होती हैं, इसमें Store Data को पढ़ा भी जा सकता है और उसमे सुधार भी किया जा सकता हैं |
Flash Drive में एक छोटा Pried Circuit Board होता है जो प्लास्टिक या धातु के Cover से ढका होता हैं इसलिए यह मजबूत होता है | यह Plug-and-Play उपकरण है | आज यह सामान्य रूप से 2 GB, 4 GB, 8 GB, 16 GB, 32 GB, 64 GB, 128 GB आदि क्षमता में उपलब्ध हैं|
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 UNIT-4
Communication(संचार) क्या है?
Communication (संचार) का अर्थ हैं सूचनाओ का आदान प्रदान करने से हैं | लेकिन ये सूचनाये तब तक उपयोगी नहीं हो सकती जब तक कि इन सूचनाओ का आदान प्रदान न हो | पहले सूचनाओ या सन्देश को एक स्थान से दुसरे स्थान पर भेजने में काफी समय लगता था | किन्तु वर्तमान में संदेशों का आदान प्रदान बहुत ही आसान हो गया हैं और समय भी कम लगता है सेटेलाइट व टेलीविजन ने तो सारी दुनिया को एक नगर में बदल दिया हैं |
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में कुछ सार्थक चिह्नों, संकेतों या प्रतीकों के माध्यम से विचारों या भावनाओं का आदान-प्रदान करते हैं तो उसे संचार कहते हैं।
“Communication refers to the act by one or more persons of sending and receiving messages – distorted by noise-with some effect and some opportunity for feedback”
Use of Communication and IT (Information Technology):-
हमारे पास कम्युनिकेशन के सबसे प्रबल माध्यम में हमारी आवाज और भाषा है और इसके वाहक के रूप में पत्र, टेलीफोन, फैक्स, टेलीग्राम, मोबाइल तथा इन्टरनेट इत्यादि हैं | कम्युनिकेशन का उद्देश्य संदेशो तथा विचारो का आदान प्रदान है| सम्पूर्ण मानव सभ्यता इसी कम्युनिकेशन पर आधारित है तथा इस कम्युनिकेशन को तेज व सरल बनाने के लिए सूचना प्रोद्योगिकी का जन्म हुआ| कंप्यूटर, मोबाइल, इन्टरनेट सबका अविष्कार इसी कम्युनिकेशन के लिए हुआ इन्टरनेट एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा हम पूरी दुनिया में कही भी व किसी भी समय कम से कम समय व कम से कम खर्च में सूचनाओ व विचारो का आदान प्रदान कर सकते हैं|
Communication Process (संचार प्रक्रिया)
कम्युनिकेशन का मुख्य उद्देश्य डाटा व सूचनाओ का आदान प्रदान करना होता है| डाटा कम्युनिकेशन से तात्पर्य दो समान या विभिन्न डिवाइसों के मध्य डाटा का आदान प्रदान से है अर्थात कम्युनिकेशन करने के लिए हमारे पास समान डिवाइस होना आवश्यक है | डाटा कम्युनिकेशन के प्रभाव को तीन मुख्य विशेषताओ द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है|
1.             डिलीवरी (Delivery) – डिलीवरी से तात्पर्य डाटा को एक जगह से दुसरे जगह प्राप्त कराने से है|
2.             शुद्धता (Accuracy) – यह डाटा की गुणवत्ता या डाटा के सही होने को दर्शाता है|
3.             समयबधता (Timeliness) – यह गुण डाटा के निश्चय समय में डिलीवर होने को दर्शाता है|
किसी कम्युनिकेशन प्रोसेस (प्रक्रिया) में पाँच घटक जुड़े होते हैं|
·              संदेश (Message)
·              प्रेषक (Sender)
·              माध्यम (Medium)
·              प्राप्तकर्ता (Receiver)
·              प्रोटोकॉल (Protocol)

सॉफ्टवेयर तथा उसके प्रकार
सॉफ्टवेयर Computer का वह Part होता है जिसको हम केवल देख सकते हैं और उस पर कार्य कर सकते हैं, Software का निर्माण Computer पर कार्य करने को Simple बनाने के लिये किया जाता है, आजकल काम के हिसाब से Software का निर्माण किया जाता है, जैसा काम वैसा Software Software को बडी बडी कंपनियों में यूजर की जरूरत को ध्‍यान में रखकर Software programmers द्वारा तैयार कराती हैं, इसमें से कुछ free में उपलब्‍ध होते है तथा कुछ के लिये चार्ज देना पडता है। जैसे आपको फोटो से सम्‍बन्धित कार्य करना हो तो उसके लिये फोटोशॉप या कोई वीडियो देखना हो तो उसके लिये मीडिया प्‍लेयर का यूज करते है।
कंप्यूटर बिभिन्न प्रोग्रामों का समूह होता हैं जिसके द्वारा विशिष्ट कार्यों को किया जा सकता हैं| कंप्यूटर में दो भाग होते है, पहला हार्डवेयर कहलाता है जबकि दूसरा सॉफ्टवेयर | हार्डवेयर कंप्यूटर के भौतिक भाग होते है जिन्हें हम छु सकते है जो एक निश्चित कार्य करते है, जिसके लिए उन्हें बनाया गया है जैसे- Keyboard, Mouse, Monitor, CPU, Printer, Projector etc. इसके विपरीत सॉफ्टवेयर प्रोग्राम का समूह है जो इन हार्डवेयर के कार्यों को निर्धारित करता है जैसे- word Processing, Operating System, Presentation etc. आते है, जो हार्डवेयर के साथ Interface करते हैं| यदि हार्डवेयर की तुलना कंप्यूटर के शरीर से जाती है तो सॉफ्टवेयर की तुलना कंप्यूटर के दिमाग से की जाती है| जिस प्रकार दिमाग के बगैर मानवीय शरीर बेकार हैं ठीक उसी प्रकार सॉफ्टवेयर के बगैर कंप्यूटर का कोई अस्तित्व नहीं है| उदाहरणार्थ हम keyboard, Mouse, Printer, Internet आदि का प्रयोग करते है इन सबको को चलाने के लिए भी Software की आवश्यकता होती है|
“Software is a Group of Programmes”
Computer On होने के बाद Software सबसे पहले RAM में Load होता है तथा Central Processing Unit में Execute (क्रियान्वित) किया जाता है| यह Machine Language में बना होता है, जो एक अलग Processor के लिए विशेष होता है| यह High Level Language तथा Assembly Language में भी लिखा जाता है|
सॉफ्टवेयर की आवश्यकता (Needs of Software) –
जैसा की हम जानते है Computer, Hardware और Software का समूह है यदि इसमें से Software को निकाल दिया जाये तो Computer एक डिब्बे के समान रह जायेगा यह डिब्बा उस समय तक कार्य नहीं कर सकता जब तक कि इसमें Operating System Software load न किया जाये| इसका अर्थ यह है कि Computer में कुछ भी कार्य करने के लिए Operating System Software का होना आवश्यक है| हमें आपरेटिंग सिस्टम सॉफ्टवेयर के आलावा कुछ और सॉफ्टवेयर्स की भी आवश्यकता पड़ती हैं| उदाहरण के लिए, यदि आप एक पत्र को टाइप करना अथवा ग्राफिक चार्ट निर्मित करना या एक प्रस्तुतीकरण का निर्माण करना या अपने कार्यालय सम्बन्धी व्यक्तिगत डाटा का प्रबंधन करना चाहते है तो आपको फिर से अलग-अलग उद्देश्यों के लिए कई अलग-अलग सॉफ्टवेयरों की आवश्यकता पड़ेगी जिन्हें अनुप्रयोग सॉफ्टवेयर (Application Software) कहा जाता है |
इसके अतिरिक्त यदि आपका कम्प्यूटर वायरस से संक्रमित हो जाये तो आपको यूटिलिटि नामक सॉफ्टवेयर की आवश्यकता पड़ेगी | संक्षेप में यदि आपके पास कम्प्यूटर सिस्टम है तथा आप निर्विघ्न कार्य करना चाहते है, तो आपको समय-समय पर सॉफ्टवेयर की आवश्यकता पड़ेगी |
सॉफ्टवेयर कि आवश्यकता के निम्न कारण हो सकते हैं-
·             Computer चालू करने के लिए
·             पत्र टाइप करने के लिए
·             चार्ट का निर्माण करने के लिए
·             Presentation बनाने के लिए
·             Data को manage करने के लिए
·             Internet का प्रयोग करने के लिए
सॉफ्टवेयर के प्रकार (Types of Software) – कम्प्यूटर Software को तीन भागो में विभाजित करता है | सिस्टम सॉफ्टवेयर (System Software), अनुप्रयोग सॉफ्टवेयर (Application Software) और Utility Software.
सिस्टम सॉफ्टवेयर (System Software) –
सिस्टम सॉफ्टवेयर System Software एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जो हार्डवेयर (Hardware) को प्रबंध (Manage) एवं नियंत्रण (Control) करता है ताकि एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software) अपना कार्य पूरा कर सके | यह कम्यूटर सिस्टम का आवश्यक भाग होता है आपरेटिंग सिस्टम इसका स्पष्ट उदाहरण है |
“System Software वे है जो System को नियंत्रित और व्यवस्थित रखने का कार्य  करते है
यदि सिस्टम सॉफ्टवेयर को Non volatile storage जैसे इंटिग्रेटेड सर्किट (IC) में Store किया जाता है, तो इसे सामान्यत: फर्मवेयर का नाम दिया जाता है संक्षेप में सिस्टम सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों का एक समूह है| System Software कई प्रकार के होते है जैसे-
·             Operating System Software
·             Compiler
·             Interpreter
·             Assembler
·             Linker
·             Loader
·             Debugger etc.
 Operating System Software:- Operating System एक System Software है, जिसे Computer को चालू करने के बाद Load किया जाता है| अर्थात यह Computer को Boot करने के लिए आवश्यक प्रोग्राम है | यह Computer को boot करने के अलावा दूसरे Application software और utility software के लिए आवश्यक होता है|
Function of Operating system
·             Process Management
·             Memory Management
·             Disk and File System
·             Networking
·             Security Management
·             Device Drivers
Compiler :- Compiler executable file बनाने के लिए Source Code को Machine code में translate करता है| ये code executable file के object code कहलाते है| Programmer इस executable object file को किसी दूसरे computer पर copy करने के पश्चात् execute कर सकते हैं| दूसरे शब्दों में Program एक बार Compile हो जाने के बाद स्वतंत्र रूप से executable file बन जाता है जिसको execute होने के लिए compiler की आवश्यकता नहीं होती है| प्रत्येक Programming language को Compiler की आवश्यकता होती हैं|
            Compiler, Source code को Machine code में बदलने का कार्य करता है इसकी कार्य करने की गति (Speed) अधिक होती है और यह Memory में अधिक स्थान घेरता है क्योकि यह एक बार में पूरे प्रोग्राम को Read करता है और यदि कोई Error होती है तो error massage Show करता है|
Interpreter :- Interpreter एक प्रोग्राम होता हैं जो High level language में लिखे Program को Machine Language में बदलने का कार्य करता है Interpreter एकएक Instruction को बारी-बारी से machine language को Translate करता है |यह High level language के Program के सभी instruction को एक साथ machine language में translate नहीं करता है|
            Interpreter Memory में कम स्थान घेरता है क्योकि यह प्रोग्राम की हर लाइन को बारी-बारी से Check करता है और यदि किसी Line में कोई error होती है तो यह तात्काल Error Massage Show करता है और जब तक उस गलती को सुधार नहीं दिया जाता तब तक यह आगे बढने नहीं देता |
 Assembler :- Assembler एक प्रोग्राम है जो Assembly language को machine language में translate करता है| इसके अलावा यह high level language को Machine language में translate करता है यह निमोनिक कोड (mnemonic code) जैसे- ADD, NOV, SUB आदि को Binary code में बदलता है|
एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software) –
एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software), कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर का एक उपवर्ग है जो User द्वारा इच्छित काम को करने के लिए प्रयोग किया जाता हैं|
Application Software वे Software होते है जो User तथा Computer को जोड़ने का कार्य करते है|”
Application Software Computer के लिए बहुत उपयोगी होते है यदि कंप्यूटर में कोई भी Application Software नहीं है तो हम कंप्यूटर पर कोई भी कार्य नहीं कर सकते है Application Software के बिना कंप्यूटर मात्र एक डिब्बा हैं| Application Software के अंतर्गत कई Program आते है जो निम्नलिखित हैं|
·             MS word
·             MS Excel
·             MS PowerPoint
·             MS Access
·             MS Outlook
·             MS Paint etc.
यूटिलिटी सॉफ्टवेयर (Utility Software) :-
यूटिलिटी सॉफ्टवेयर (Utility Software) को सर्विस प्रोग्राम (Service Program) के नाम से भी जाना जाता हैं| यह एक प्रकार का कंप्यूटर सॉफ्टवेयर है इसे विशेष रूप से कंप्यूटर हार्डवेयर (Hardware), ओपरेटिंग सिस्टम (Operating System) या एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software) को व्यवस्थित करने में सहायता हेतु डिजाईन किया गया है|
“Utility Software वे Software होते है जो कंप्यूटर को Repair कर Computer कि कार्यक्षमता को बढ़ाते है तथा उसे और कार्यशील बनाने में मदद करते हैं|”
 विभिन्न प्रकार के यूटिलिटी सॉफ्टवेयर उपलब्ध है जैसे-
·             Disk Defragmenter
·             System Profilers
·             Virus Scanner
·             Anti virus
·             Disk Checker

·             Disk Cleaner etc.

Computer Language (कंप्यूटर भाषा)
हर देश तथा राज्य की अपनी अपनी भाषा होती हैं और इसी भाषा के कारण लोग एक दूसरे की बातो को समझ पाते है| ठीक उसी प्रकार कंप्यूटर की भी अपनी भाषा होती है जिसे कंप्यूटर समझता है गणनाये करता है और परिणाम देता हैप्रोग्रामिंग भाषा कंप्यूटर की भाषा है जिसे कंप्यूटर के विद्वानों ने कंप्यूटर पर एप्लिकेशनों को विकसित करने के लिए Design किया है| पारंपरिक भाषा कि तरह ही प्रोग्रामिंग भाषाओँ के अपने व्याकरण होते है इसमें भी वर्ण, शब्द, वाक्य इत्यादि होते हैं|
प्रोग्रामिंग भाषाओ के प्रकार (Types of Programming Language)
प्रोग्रामिंग भाषा कई है | कुछ को हम समझते है तथा कुछ को केवल कम्प्यूटर ही समझता है | जिन भाषाओ को केवल कम्प्यूटर समझता है वे आमतौर पर निम्नस्तरीय भाषा (Low level Language) कहलाती है तथा जिन भाषाओ को हम समझ सकते है उन्हें उच्चस्तरीय भाषा (High level language) कहते है |
 निम्न स्तरीय भाषा (Low Level Language) –
वह भाषाएँ (Languages) जो अपने संकेतो को मशीन संकेतो में बदलने के लिए किसी भी अनुवादक (Translator) को सम्मिलित नही करता, उसे निम्न स्तरीय भाषा कहते है अर्थात निम्न स्तरीय भाषा के कोड को किसी तरह से अनुवाद (Translate) करने की आवश्यकता नही होती है | मशीन भाषा (Machine Language) तथा असेम्बली भाषा (Assembly Language) इस भाषा के दो उदाहरण है| लेकिन इनका उपयोग प्रोग्राम (Program) में करना बहुत ही कठिन है | इसका उपयोग करने के लिए कम्प्यूटर के हार्डवेयर (Hardware) के विषय में गहरी जानकारी होना आवश्यक है | यह बहुत ही समय लेता है और त्रुटियों (Error) की सम्भावना अत्यधिक होती है | इनका संपादन (Execution) उच्च स्तरीय भाषा (High level language) से तेज होता है | ये दो प्रकार की होती है
1.           मशीन भाषा (Machine Language)
2.           असेम्बली भाषा (Assembly Language)
 मशीन भाषा (Machine Language) –
कम्प्यूटर प्रणाली (Computer System) सिर्फ अंको के संकेतो को समझाता है, जोकि बाइनरी (Binary) 1 या 0 होता है | अत: कम्प्यूटर को निर्देश सिर्फ बाइनरी कोड 1 या 0 में ही दिया जाता है और  जो निर्देश बाइनरी कोड (Binary Code) में देते है उन्हें मशीन भाषा (Machine Language) कहते है | मशीनी भाषा (Machine Level Language) मशीन के लिए सरल होती है और प्रोग्रामर के लिए कठिन होती है | मशीन भाषा प्रोग्राम का रख रखाव भी बहुत कठिन होता है | क्योकि इसमें त्रुटीयो (Error) की संभावनाएँ अधिक होती है | Machine Language प्रत्येक Computer System पर अलग-अलग कार्य करती है, इसलिए एक कंप्यूटर के कोड दूसरे कंप्यूटर पर नही चल सकते|
असेम्बली भाषा (Assembly Language) –
असेम्बली भाषा में निर्देश अंग्रेजी के शब्दों के रूप में दिए जाते है, जैसे की NOV, ADD, SUB आदि, इसे mnemonic code” (निमोनिक कोड) कहते है | मशीन भाषा की तुलना में असेम्बली भाषा को समझना सरल होता है लेकीन जैसा की हम जानते है की कम्प्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस (Electronic Device) है और यह सिर्फ बाइनरी कोड (Binary Code) को समझता है, इसलिए जो प्रोग्राम असेम्बली भाषा में लिखा होता है, उसे मशीन स्तरीय भाषा (Machine level language) में अनुवाद (Translate) करना होता है | ऐसा Translator जो असेम्बली भाषा (Assembly language) को मशीन भाषा (Machine language) में Translate करता है, उसे असेम्बलर (Assembler) कहते है |
      डाटा (Data) को कम्प्यूटर रजिस्टर में जमा किया जाता है और प्रत्येक कम्प्यूटर का अपना अलग रजिस्टर सेट होता है, इसलिए असेम्बली भाषा में लिखे प्रोग्राम सुविधाजनक नही होता है | इसका मतलब यह है कि दुसरे कम्प्यूटर प्रणाली के लिए हमें इसे फिर से अनुवाद करना पड़ता है |
उच्च स्तरीय भाषा (High level language) सुविधाजनक होने के लक्षणों को ध्यान में रखकर बनाया गया है, इसका अर्थ यह कि ये भाषा मशीन पर निर्भर करती है | यह भाषा अंग्रेजी भाषा के कोड जैसी होती है, इसलिए इसे कोड करना या समझना सरल होता है | इसके लिए एक Translator की आवश्यकता होती है, जो उच्च स्तरीय भाषा के Program को मशीन कोड में translate करता है इसके उदाहरण है फॉरटरैन (FORTRAN), बेसिक (BASIC), कोबोल (COBOL), पास्कल (PASCAL), सी (C), सी++ (C++), जावा (JAVA), VISUAL BASIC, Visual Basic.net HTML, Sun Studio आदि इसी श्रेणी (Category) की भाषा है इसको दो generation में बाँटा गया गई|
1.           Third Generation Language
2.           Fourth Generation Language
तृतीय पीढ़ी भाषा (Third Generation Language) –
तृतीय पीढ़ी भाषाएँ (Third Generation Language) पहली भाषाएँ थी जिन्होंने प्रोग्रामरो को मशीनी तथा असेम्बली भाषाओ में प्रोग्राम लिखने से आजाद किया| तृतीय पीढ़ी की भाषाएँ मशीन पर आश्रित नही थी इसलिए प्रोग्राम लिखने के लिए मशीन के आर्किटेक्चर को समझने की जरुरत नही थी | इसके अतिरिक्त प्रोग्राम पोर्टेबल हो गए, जिस कारण प्रोग्राम को उनके कम्पाइलर व इन्टरप्रेटर के साथ एक कम्प्यूटर से दुसरे कम्प्यूटर में कॉपी किया जा सकता था| तृतीय पीढ़ी के कुछ अत्यधिक लोकप्रिय भाषाओ में फॉरटरैन (FORTRAN), बेसिक (BASIC), कोबोल (COBOL), पास्कल (PASCAL), सी (C), सी++ (C++) आदि सम्मिलित है |
चतुर्थ पीढ़ी भाषा (Fourth Generation Language) –
Forth Generation Language, तृतीय पीढ़ी के भाषा से उपयोग करने में अधिक सरल है | सामान्यत: चतुर्थ पीढ़ी की भषाओ में विजुअल (Visual) वातावरण होता है जबकि तृतीय पीढ़ी की भाषाओ में टेक्सचुअल (Textual) वातावरण होता था | टेक्सचुअल वातावरण में प्रोग्रामर Source Code को निर्मित करने के लिए अंग्रेजी के शब्दों का उपयोग करते है | चतुर्थ पीढ़ी की भाषाओ के एक पंक्ति का कथन तृतीय पीढ़ी के 8 पंक्तियों के कथन के बराबर होता है | विजुअल वातावरण में, प्रोग्रामर बटन, लेबल तथा टेक्स्ट बॉक्सो  जैसे आइटमो को ड्रैग एवं ड्रॉप करने के लिए टूलबार का उपयोग करते है| इसकी विशेषता IDE (Integrated development Environment) हैं जिनके Application Compiler तथा run time को Support करते है| Microsoft Visual studio and Java Studio इसके दो उदाहरण है|
 लाभ (Advantages) –
·             चतुर्थ पीढ़ी की भाषा को सीखना सरल है तथा इसमें सॉफ्टवेयर का विकास करना आसान है|
·             चतुर्थ पीढ़ी की भाषाओ में टेक्सचुअलइंटरफेस (Textual Interface) के साथ-साथ ग्राफिकल इंटरफेस (Graphical Interface) भी होता है |
·             प्रोग्रामरो के लिए चतुर्थ पीढ़ी की भाषाओ में विकल्प उपलब्ध रहते है क्योकि इसकी संख्या काफी बड़ी होती है |
·             चतुर्थ पीढ़ी की भाषाओ में प्रोग्रामिंग कम स्थान लेती है क्योकि इस पीढ़ी की भाषा की एक पंक्ति पूर्ववर्ती पीढ़ी भाषाओ की कई पंक्तियो के समान होती है |
·             चतुर्थ पीढ़ी की भाषाओ की उपलब्धता कठिन नहीं है |
हानि (Disadvantages) –
·             चतुर्थ पीढ़ी की भाषाएँ उच्च कंफिगरेशन के कंप्यूटरो पर ही संचालित हो सकती है|
·             इस पीढ़ी की भाषाओ के लिए विशेषज्ञता की कम आवश्यकता होती है | इसका अर्थ है की इसमें प्रोग्रामिंग आसान होने के कारण नौसिखिए भी सॉफ्टवेयर विकसित करने में सक्षम हो पाते है | परिणामस्वरूप, विशेषज्ञों का महत्व कम हो जाता है |
·             इस पीढ़ी में प्रोग्रामिंग भाषाओ की एक बड़ी श्रंखला होती है, जिससे यह निर्णय ले पाना कठिन हो जाता है की किसका प्रयोग किया जाये तथा किसे छोड़ा जाये 


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Types of Communication 
जिस प्रकार सड़क पर वन वे, टू वे होता है | ठीक उसी प्रकार कम्युनिकेशन चैनल के मोड होते हैं| कम्युनिकेशन चैनल तीन प्रकार के होते है सिम्पलेक्स (Simplex), अर्द्ध ड्यूप्लेक्स (Half Duplex) और पूर्ण ड्यूप्लेक्स (Full Duplex)|
सिम्पलेक्स (Simplex):-
इस अवस्था में डाटा का संचरण सदैव एक ही दिशा में होता हैं| अर्थात हम अपनी सूचनाओ को केवल भेज सकते है प्राप्त नहीं कर सकते सिम्पलेक्स कम्युनिकेशन कहलाता हैं |
उदाहरणार्थ- कीबोर्ड, कीबोर्ड से हम केवल सूचनाये भेज सकते है प्राप्त नहीं कर सकते |
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अर्द्ध ड्यूप्लेक्स (Half Duplex):-
इस अवस्था में डाटा का संचरण दोनों दिशाओ में होता है लेकिन एक समय में एक ही दिशा में संचरण होता है| यह अवस्था वैकल्पिक द्वि-मार्गी (Two way alternative) भी कहलाती है| अर्थात् इस अवस्था में हम अपनी सूचनाओ को एक ही समय में या तो भेज सकते है या प्राप्त कर सकते है| उदाहरणार्थ- हार्डडिस्क (Hard disk), हार्डडिस्क से डाटा का आदान प्रदान अर्द्ध ड्यूप्लेक्स (Half Duplex) अवस्था में होता है| जब हार्डडिस्क पर डाटा संगृहीत (Save) किया जाता है तो उस समय डाटा को हार्डडिस्क से पढ़ा नहीं जा सकता है और जब हार्डडिस्क से डाटा को पढ़ा जाता है तो उस समय हम डाटा को संगृहीत (Save) नहीं कर सकते |
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पूर्ण ड्यूप्लेक्स (Full Duplex):-
इस अवस्था में डाटा का संचरण एक समय में दोनों दिशाओं में संभव होता है हम एक ही समय में दोनों दिशाओ में सूचनाओं का संचरण कर सकते है | अर्थात हम एक ही समय में सूचनाएं भेज भी सकते है और प्राप्त भी कर सकते है पूर्ण ड्यूप्लेक्स (Full Duplex) कहलाता हैं |
उदाहरणार्थ- Smart Phone

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Types of Network (नेटवर्क के प्रकार)
LAN :-  इसका पूरा नाम Local Area Network है यह एक ऐसा नेटवर्क है जिसका प्रयोग दो या दो से अधिक कंप्यूटर को जोड़ने के लिए किया जाता है| लोकल एरिया नेटवर्क स्थानीय स्तर पर काम करने वाला नेटवर्क है इसे संक्षेप में लेन कहा जाता हैं| यह एक ऐसा कंप्यूटर नेटवर्क है जो स्थानीय इलाकों जैसे- घर, कार्यालय, या भवन समूहों को कवर करता है|
विशेषताये:-
1.           यह एक कमरे या एक बिल्डिंग तक सीमित रहता है |
2.           इसकी डाटा हस्तांतरित (Data Transfer) Speed अधिक होती है |
3.           इसमें बाहरी नेटवर्क को किराये पर नहीं लेना पड़ता है |
4.           इसमें डाटा सुरक्षित रहता है |
5.           इसमें डाटा को व्यवस्थित करना आसान होता है |
lan
MAN:-  इसका पूरा नाम Metropolitan Area Network हैं यह एक ऐसा उच्च गति वाला नेटवर्क है जो आवाज, डाटा और इमेज को 200 मेगाबाइट प्रति सेकंड या इससे अधिक गति से डाटा को 75 कि.मी. की दूरी तक ले जा सकता है| यह लेन (LAN) से बड़ा तथा वेन (WAN) से छोटा नेटवर्क होता है | इस नेटवर्क के द्वारा एक शहर को दूसरे शहर से जोड़ा जाता है |
इसके अंतर्गत दो या दो से अधिक लोकल एरिया नेटवर्क एक साथ जुड़े होते हैं. यह एक शहर के सीमाओ के भीतर का स्थित कंप्यूटर नेटवर्क होता हैं. राउटर, स्विच और हब्स मिलकर एक मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क का निर्माण करता हैं.
विशेषताये:-
1.           इसका रखरखाव कठिन होता है |
2.           इसकी गति उच्च होती है |
3.           यह 75 कि.मी. की दूरी तक फैला रहता है |
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WAN:-  इसका पूरा नाम Wide Area Network होता है | यह क्षेत्रफल की द्रष्टि से बड़ा नेटवर्क होता है| यह नेटवर्क न केवल एक बिल्डिंग, न केवल एक शहर तक सीमित रहता है बल्कि यह पूरे विश्व को जोड़ने का कार्य करता है अर्थात् यह सबसे बड़ा नेटवर्क होता है इसमें डाटा को सुरक्षित भेजा और प्राप्त किया जाता है |
इस नेटवर्क मे कंप्यूटर आपस मे लीज्ड लाइन या स्विच सर्किट के दुवारा जुड़े रहते हैं. इस नेटवर्क की भौगोलिक परिधि बड़ी होती है जैसे पूरा शहर, देश या महादेश मे फैला नेटवर्क का जाल. इन्टरनेट इसका एक अच्छा उदाहरण हैं. बैंको का ATM सुविधा वाईड एरिया नेटवर्क का उदाहरण हैं.
विशेषताये:-
1.           यह तार रहित नेटवर्क होता है|
2.           इसमें डाटा को संकेतो (Signals) या उपग्रह (Sate light) के द्वारा भेजा और प्राप्त किया जा सकता है |
3.           यह सबसे बड़ा नेटवर्क होता है |
4.           इसके द्वारा हम पूरी दुनिया में डाटा ट्रान्सफर कर सकते है |
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टोपोलॉजी (Topology)
टोपोलॉजी नेटवर्क की आकृति या लेआउट को कहा जाता है | नेटवर्क के विभिन्न नोड किस प्रकार एक दुसरे से जुड़े होते है तथा कैसे एक दुसरे के साथ कम्युनिकेशन स्थापित करते है, उस नेटवर्क को टोपोलॉजी ही निर्धारित करता है टोपोलॉजी फिजिकल या लौजिकल होता है|
Computers को आपस में जोडने एवं उसमें डाटा Flow की विधि टोपोलाॅजी कहलाती है। टोपोलॉजी किसी नेटवर्क में कम्प्यूटर के ज्यामिति व्यवस्था (Geometric arrangement) को कहते है |
“Topology is a Layout of Networks”
नेटवर्क टोपोलॉजी सामान्यत: निम्नलिखित प्रकार की होती है:-
1.           रिंग टोपोलॉजी (Ring Topology)
2.           बस टोपोलॉजी (Bus Topology)
3.           स्टार टोपोलॉजी (Star Topology)
4.           मेश टोपोलॉजी (Mesh Topology)
5.           ट्री टोपोलॉजी (Tree Topology)
रिंग टोपोलॉजी (Ring Topology) –
इस कम्प्यूटर में कोई होस्ट, मुख्य या कंट्रोलिंग कम्प्यूटर नही होता | इसमें सभी कम्प्यूटर एक गोलाकार आकृति में लगे होते है प्रत्येक कम्प्यूटर अपने अधीनस्थ (Subordinate)  कम्प्यूटर से जुड़े होते है, किन्तु इसमें कोई भी कम्प्यूटर स्वामी नही होता है | इसे सर्कुलर (Circular) भी कहा जाता है |
Ring
रिंग नेटवर्क (Ring Network) में साधारण गति से डाटा का आदान-प्रदान होता है तथा एक कम्प्यूटर से किसी दुसरे कम्प्यूटर को डाटा (Data) प्राप्त करने पर उसके मध्य के अन्य कंप्यूटरो को यह निर्धारित करना होता है कि उक्त डाटा उनके लिए है या नही | यदि यह डाटा उसके लिए नही है तो उस डाटा को अन्य कम्प्यूटर में आगे (Pass) कर दिया जाता है |
लाभ (Advantages) –
·             यह नेटवर्क अधिक कुशलता से कार्य करता है, क्योकि इसमें कोई होस्ट (Host) यह कंट्रोलिंग कम्प्यूटर (Controlling Computer) नही होता |
·             यह स्टार से अधिक विश्वसनीय है, क्योकि यह किसी एक कम्प्यूटर पर निर्भर नही होता है |
·             इस नेटवर्क की यदि एक लाइन या कम्प्यूटर कार्य करना बंद कर दे तो दुसरी दिशा की लाइन के द्वारा काम किया जा सकता है |
हानि (Disadvantages) –
·             इसकी गति नेटवर्क में लगे कम्प्यूटरो पर निर्भर करती है | यदि कम्प्यूटर कम है तो गति अधिक होती है और यदि कंप्यूटरो की संख्या अधिक है तो गति कम होती है |
·             यह स्टार नेटवर्क की तुलना में कम प्रचलित है, क्योकि इस नेटवर्क पर कार्य करने के लिए अत्यंत जटिल साफ्टवेयर की आवश्यकता होती है |
बस टोपोलॉजी (Bus Topology) –
बस टोपोलॉजी (Bus Topology) में एक ही तार (Cable) का प्रयोग होता है और सभी कम्प्यूटरो को एक ही तार से एक ही क्रम में जोड़ा जाता है | तार के प्रारम्भ तथा अंत में एक विशेष प्रकार का संयंत्र (Device) लगा होता है जिसे टर्मिनेटर (Terminator) कहते है | इसका कार्य संकेतो (Signals) को नियंत्रण करना होता है |
bus

लाभ (Advantages) –
·             बस टोपोलॉजी को स्थापित (Install) करना आसान होता है
·             इसमें स्टार व ट्री टोपोलॉजी की तुलना में कम केबिल उपयोगी होता है |
हानि (Disadvantages) –
·             किसी एक कम्प्यूटर की खराबी से सारा डाटा संचार रुक जाता है |
·             बाद में किसी कम्प्यूटर को जोड़ना अपेक्षाकृत कठिन है |
स्टार टोपोलॉजी (Star Topology) –
इस नेटवर्क में एक होस्ट कम्प्यूटर होता है जिसे सीधे विभिन्न लोकल कंप्यूटरो से जोड़ दिया जाता है | लोकल कम्प्यूटर आपस में एक-दुसरे से नही जुड़े होते हैं इनको आपस में होस्ट कम्प्यूटर द्वारा जोड़ा जाता है | होस्ट कम्प्यूटर द्वारा ही पूरे नेटवर्क को कंट्रोल किया जाता है |
Star topo
लाभ (Advantages) –
·             इस नेटवर्क टोपोलॉजी में एक कम्प्यूटर से होस्ट (Host) कम्प्यूटर को जोड़ने में लाइन बिछाने की लागत कम आती है |
·             इसमें लोकल कम्प्यूटर की संख्या बढाये जाने पर एक कम्प्यूटर से दुसरे कम्प्यूटर पर सूचनाओ के आदान-प्रदान की गति प्रभावित नही होती है, इसके कार्य करने की गति कम हो जाती है क्योकि दो कम्प्यूटर के बीच केवल होस्ट (Host) कम्प्यूटर ही होता है|
·             यदि कोई लोकल कम्प्यूटर ख़राब होता है तो शेष नेटवर्क इससे प्रभावित नही होता है|
हानि (Disadvantages) –
·             यह पूरा तंत्र होस्ट कम्प्यूटर पर निर्भर होता है | यदि होस्ट कम्प्यूटर ख़राब हो जाय तो पूरा का पूरा नेटवर्क फेल हो जाता हैं |
मेश टोपोलॉजी (Mesh Topology) –
मेश टोपोलॉजी को मेश नेटवर्क (Mesh Network) या मेश भी कहा जाता है | मेश एक नेटवर्क टोपोलॉजी है जिसमे संयंत्र (Devices) नेटवर्क नोड (Nodes) के मध्य कई अतिरिक्त अंत: सम्बन्ध (Interconnections) से जुड़े होते है | अर्थात मेश टोपोलॉजी में प्रत्येक नोड नेटवर्क के अन्य सभी नोड से जुड़े होते है |
Mesh topo
मेश टोपोलॉजी में सारे कंप्यूटर कही न कही एक दूसरे से जुड़े रहते हैं और एक दूसरे से जुड़े होने के कारण ये अपनी सूचनाओ का आदान प्रदान आसानी से कर सकते हैं | इसमें कोई होस्ट कंप्यूटर नहीं होता हैं|
 ट्री टोपोलॉजी (Tree Topology) –
ट्री टोपोलॉजी में स्टार तथा बस दोनों टोपोलॉजी के लक्षण विधमान होते है | इसमें स्टार टोपोलॉजी की तरह एक होस्ट कंप्यूटर होता है और बस टोपोलॉजी की तरह सारे कंप्यूटर एक ही केबल से जुड़े रहते हैं | यह नेटवर्क एक पेड़ के समान दिखाई देता हैं |
tree
लाभ (Advantages) –
·             प्रत्येक खण्ड (Segment) के लिए प्वाइन्ट तार बिछाया जाता है |
·             कई हार्डवेयर तथा साफ्टवेयर विक्रेताओ के द्वारा सपोर्ट किया जाता है |
हानि (Disadvantages) –
·             प्रत्येक खण्ड (Segment) का कुल लम्बाई प्रयोग में लाये गए तार के द्वारा सीमित होती है |
·             यदि बैकबोन लाइन टूट जाती है तो पूरा खण्ड (Segment) रुक जाता है |
·             अन्य टोपोलॉजी की अपेक्षा इसमें तार बिछाना तथा इसे कन्फीगर (Configure) करना कठिन होता है |


वायरस क्या है?
VIRUS का पूरा नाम Vital Information Resources Under Siege है। वायरस कम्प्यूटर में छोटे- छोटे प्रोग्राम होते है। जो auto execute program होते जो कम्प्यूटर में प्रवेष करके कम्प्यूटर की कार्य प्रणाली को प्रभावित करते है। वायरस कहलाते है।
वायरस एक द्वेषपूर्ण प्रोग्राम है जो कंप्यूटर के डाटा को क्षतिग्रस्त करता है। यह कंप्यूटर डाटा मिटाने या उसे खराब करने का कार्य करता है। वायरस जानबूझकर लिखा गया प्रोग्राम है। यह कंप्यूटर के बूट से अपने को जोड़ लेता है और कंप्यूटर जितनी बार बूट करता है वायरस उतना ही अधिक फैलता है। वायरस हार्ड डिस्क के बूट सेक्टर में प्रवेश कर के हार्ड डिस्क की गति को धीमा कर देता है प्रोग्राम चलने से भी रोक सकता है। कई वायरस काफी समय पश्चात भी डाटा और प्रोग्राम को नुकसान पंहुचा सकते हैं। किसी भी प्रोग्राम से जुड़ा वायरस तब तक सक्रीय नहीं होता जब तक प्रोग्राम को चलाया न जाय। वायरस जब सक्रीय होता है तो कंप्यूटर मेमोरी में अपने को जोड़ लेता है और फैलने लगता है
प्रोग्राम वायरस प्रोग्राम फ़ाइल को प्रभावित करता है। बूट वायरस बूट रिकॉर्ड , पार्टीशन और एलोकेशन टेबल को प्रभावित करता है। कंप्यूटर में वायरस फैलने के कई कारण हो सकते हैं। संक्रमित फ्लापी डिस्क , संक्रमित सीडी या संक्रमित पेन ड्राइव आदि वायरस फ़ैलाने में सहायक हैं। ई-मेल , गेम , इंटरनेट फाइलों द्वारा भी वायरस कंप्यूटर में फ़ैल सकता है।
वायरस को पहचानना बहुत मुश्किल नहीं है। वायरस इन्फेक्शन के गंभीर रूप लेने से पहले कम्प्यूटर में उनके संकेत दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए पढ़ें निम्नलिखित प्वाइंट्स:
जब कंप्यूटर धीमा हो :  कम्प्यूटर बहुत धीमा हो गया है और किसी भी सॉफ्टवेयर को खोलने में ज्यादा समय ले रहा है, तो इसका मतलब है कि उसकी मेमोरी और सीपीयू का एक बड़ा हिस्सा वायरस या स्पाईवेयर की प्रोसेसिंग में व्यस्त है। ऐसे में कंप्यूटर शुरू होने और इंटरनेट एक्सप्लोरर पर वेब पेज खुलने में देर लगती है।
ब्राउजर सेटिंग्स में बदलाव : आपके ब्राउजर का होमपेज अपने आप बदल गया है, तो बहुत संभव है कि आपके कम्प्यूटर में किसी स्पाईवेयर का हमला हो चुका है। होमपेज उस वेबसाइट या वेब पेज को कहते हैं, जो इंटरनेट ब्राउजर को चालू करने पर अपने आप खुल जाता है।
आमतौर पर हम टूल्स मेन्यू में जाकर अपना होमपेज सेट करते हैं, जो अमूमन आपकी पसंदीदा वेबसाइट, सर्च इंजन या ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली सविर्स जैसे ई-मेल आदि होता है। पीसी में घुसा स्पाईवेयर आपको किसी खास वेबसाइट पर ले जाने के लिए इसे बदल देता है।
कंप्यूटर का हेंग होना : जब कम्प्यूटर बार-बार जाम या अचानक हेंग होने लगा है, तो समझ जाएं कि यह इन्फेक्शन के कारण हो सकता है। खासकर तब, जब आपने कम्प्यूटर में कोई नया सॉफ्टवेयर या हार्डवेयर भी इंस्टॉल न किया हो।
पॉप अप विंडोज :  इंटरनेट ब्राउजर को चालू करते ही उसमें एक के बाद एक कई तरह की पॉप अप विंडोज खुलने लगती हैं, तो हो सकता है कि इनमें से कुछ में किसी खास चीज या वेबसाइट का विज्ञापन किया गया हो या फिर वे अश्लील वेबसाइट्स के लिंक्स से भरी पड़ी हों।
जब अजीब से आइकन बनने लगें: आपके डेस्कटॉप या सिस्टम ट्रे में अजीब किस्म के आइकन आ गए हों, जबकि आपने ऐसा कोई सॉफ्टवेयर भी इंस्टॉल नहीं किया है। क्लिक करने पर वे तेजी से अश्लील वेबसाइट्स को खोलना शुरू कर देते हैं।

अनजाने फोल्डर और फाइलें : आपके कम्प्यूटर की किसी ड्राइव या डेस्कटॉप पर कुछ ऐसे फोल्डर दिखाई देते हैं जिन्हें आपने नहीं बनाया। उनके अंदर कुछ ऐसी फाइलें भी हैं, जिन्हें न तो आपने बनाया और न ही वे किसी सॉफ्टवेयर के इंस्टॉलेशन से बनीं। इसके अलावा उन्हें डिलीट करने के बाद भी वे कुछ समय बाद फिर से आ जाती हैं।
वायरस फैलता कैसे है?
वायरस फैलने के कई कारण हो सकते है | इसके संक्रमण के मुख्य कारण इस प्रकार है
1.           चोरी किये गये सॉफ्टवेयर से (Using A pirated Software)
2.           नेटवर्क प्रणाली से (Through Network System)
3.           दुसरे संग्रह के माध्यम से (Through Secondary Storage Device)
4.           इन्टरनेट से (Through Internet)
·              चोरी की गई सॉफ्टवेयर से (Using A Pirated Software) – जब कोई सॉफ्टवेयर गैर कानूनी ढंग से प्राप्त किया गया हो, तो इसे चोरी किये गये साफ्टवेयर कहते है|
·             नेटवर्क प्रणाली से (Through Network System) – आज कल सभी कंप्यूटर्स को एक दूसरे से जोड के रखा जाता है और कंप्यूटर एक दूसरे से जुड़े होने के कारण डाटा को आसानी से हस्तांतरित किया जा सकता है तब यह पूरे नेटवर्क पर वायरस के संक्रमण का कारण बनता है|
·             द्वितीयक संग्रह के माध्यम से (Through Secondary Storage Device) – जब कोई डाटा द्वितीयक संग्रह के माध्यम से स्थानांतरित या कॉपी किया जाता है तो उसका वायरस भी उसमे स्थानांतरित हो जाता है तथा यह संक्रमण (Virus) का कारण बनता है|
·             इन्टरनेट से (Through Internet) – आज इन्टरनेट को वायरस संक्रमण का मुख्य वाहक माना जाता है आज सारी दुनिया इन्टरनेट से जुडी हुई है और सूचनाओ का आदान प्रदान भी अधिक होता है | आज सबसे ज्यादा वायरस फैलने का कारण इन्टरनेट ही हैं|


 Types of Computer Virus
·             बूट सेक्टर वायरस (Boot Sector Virus) – इस प्रकार के वायरस फ्लापी तथा हार्डडिस्क के बूट सेक्टर में संगृहीत होते है| जब कम्प्यूटर को प्रारम्भ करते है तब यह आपरेटिंग सिस्टम को लोड होने में बाधा डालते है और यदि किसी तरह आपरेटिंग सिस्टम कार्य करने लगता है तब यह कम्प्यूटर के दुसरे संयंत्रो को बाधित करने लगते है|
·             पार्टीशन टेबल वायरस (Partition Table Virus) – इस प्रकार के वायरस हार्ड डिस्क के विभाजन तालिका को नुकसान पहुचाते है| इनसे कम्प्यूटर के डाटा को कोई डर नही होतायह हार्डडिस्क के मास्टर बूट रिकार्ड को प्रभावित करता है तथा निम्नलिखित परिणाम होते है|
1.           यह मास्टर बूट रिकार्ड के उच्च प्राथमिकता वाले स्थान पर अपने आप को क्रियान्वित करते है|
2.           यह रैम की क्षमता को कम कर देते है|
3.           यह डिस्क के इनपुट/आउटपुट नियंत्रक प्रोग्राम में त्रुटी उत्पन्न करते है|
·             फ़ाइल वायरस (File Virus) – यह वायरस कंप्यूटर की Files को नुकसान पहुचता है यह .exe फ़ाइल को नुक्सान पहुचता हैं इन्हें फाइल वायरस कहा जाता हैं|
·             गुप्त वायरस (Stealth Virus) – गुप्त वायरस अपने नाम के अनुसार कम्प्यूटर में User से अपनी पहचान छिपाने का हर संभव प्रयास करते है| इन्हें गुप्त वायरस कहा जाता हैं|
·             पॉलिमार्फिक वायरस (Polymorphic Virus) – यह वायरस अपने आप को बार बार बदलने की क्षमता रखता है ताकि प्रत्येक संक्रमण वास्तविक संक्रमण से बिल्कुल अलग दिखे | ऐसे वायरस को रोकना अत्यंत कठिन होता है क्योकि प्रत्येक बार ये बिल्कुल अलग होता है |

·             मैक्रो वायरस (Macro Virus) – मैक्रो वायरस विशेष रूप से कुछ विशेष प्रकार के फ़ाइल जैसे डाक्यूमेंट, स्प्रेडशीट इत्यादि को क्षतिग्रस्त करने के लिए होते है | ये वायरस केवल Micro Software Office की फाइलों को नुकसान पहुचता हैं|
वायरस निरोधक प्रोग्राम (Anti Virus Program)
हमारे कंप्यूटर में वायरस को खोजकर उसे नष्ट करने के लिए बनाये गए प्रोग्राम का एंटीवायरस (ANTI VIRUS) है। एंटी वायरस एक प्रोग्राम है जो की हमारे कंप्यूटर में वायरस को खोजता है और उन्हें नष्ट करता है। कंप्यूटर के लिए एंटी वायरस बहुत जरुरी होता है। एंटीवायरस किसी वायरस के सक्रीय होने पर आपको सूचित करता है। एंटी वायरस के द्वारा समय समय पर कंप्यूटर को स्कैन भी किया जा सकता है। आज के समय में कई एंटीवायरस बाजार में और इंटरनेट पर उपलब्ध है। कुछ मुख्य एंटीवायरस इस प्रकार हैं-
नॉर्टन (NORTAN) , अवीरा (AVIRA), मकैफ़ी (Mcafee) , अवास्ट (AVAST) आदि।
इनका ऑटो प्रोडक्ट इस्तेमाल से पहले प्रोग्राम और ईमेल का जाँच करके उसे वायरस मुक्त बनाता है। यदि आपके कंप्यूटर में कोई वायरस सक्रीय हो रहा है या हो गया है तो आपको ये सूचित करता है। अब बात आती है की एंटीवायरस के प्रयोग द्वारा कंप्यूटर को कैसे सुरक्षित रखा जाय-
1. अपने कंप्यूटर को वायरस मुक्त रखने के लिए समय समय पर एंटी वायरस द्वारा स्कैन किया जाना चाहिए।
2. जब भी आप अपने कंप्यूटर में अलग से मेमोरी लगाएं तो उसे एंटीवायरस द्वारा जरूर स्कैन करें।
3.कंप्यूटर में सीडी लगाते समय ये देख ले की सीडी पर कोई स्क्रेच तो नहीं है। सीडी लगाने के बाद उसे स्कैन जरूर करें।
4.अगर आपको एंटीवायरस द्वारा स्कैन करने पर कोई वायरस मिलता है तो उसे नस्ट कर दे।
5. गेम को कंप्यूटर में रन करने से पहले स्कैन जरूर कर लें।
6. आप कभी भी फ्री एंटीवायरस का प्रयोग अपने कंप्यूटर में न करें। कुछ एंटीवायरस आपको फ्री ट्रॉयल देती है कुछ समय यूज़ करने के लिए आप उसका प्रयोग करके देख सकते हैं की आपके कंप्यूटर में कौन सा एंटीवायरस सही काम कर रहा है।
7. जो एंटीवायरस आपके कंप्यूटर में सही काम करे उसे ही अपने कंप्यूटर में रखें।
8. एंटीवायरस को समय-समय पर अपडेट जरूर करें।
9. आप अपने कंप्यूटर के लिए अच्छा एंटीवायरस ही खरीदें मुफ़्त एंटीवायरस पर ध्यान न दे।
10.एक बार में एक ही एंटीवायरस रखेँ अपने कंप्यूटर पर इससे आपके कंप्यूटर की स्पीड अच्छी रहेगी।
वायरस को खोजने तथा उन्हें समाप्त करने के लिए कई उपाय (Tools) है जिनके विवरण निम्नलिखित है
·             प्रिवेंटर तथा चेक समर (Preventers And Check Summers):- प्रिवेंटर एंटी वायरस यधपि निरोधक प्रोग्रामो के लाभ बहुत है, परन्तु यह अपने लिए मेमोरी में स्थान घेरते है तथा कम्प्यूटर सिस्टम की गति को भी कम करते है तथा नये वायरसों को पकड़ पाने में भी बहुत अधिक सक्षम नही होते | किन्तु, इस प्रकार की निति कम समय के उपचार के लिए तथा द्रढ़ वायरस संक्रमण से छुटकारा पाने के लिए उपयोगी है अधिकतर एंटी-वायरस पैकेज निरोधक प्रोग्राम के साथ आते है जो सिस्टम को वायरस संक्रमित होने से पहले वायरस को ढूढ़ने में सहायक होते है |चेक समर (Check Summers) का प्रयोग क्रियान्वित योग्य फ़ाइलो के सामग्री में वृद्धी की सुचना देते है | जब कोई वायरस कम्प्यूटर के अन्दर प्रवेश करता है तो वह आवश्यक रूप से क्रियान्वयन फ़ाइलो (Executable files) में बदलाव लता है | इस अवस्था में चेक समर पत्येक क्रियान्वयन योग्य फ़ाइलो से जुडी हुई चेक सम (Check Sum) अथवा सायकालिक रिडन्नसी चेक (Cyclic Redundancy Check) से सम्बंधित सुचना को रखता है तथा कोई भी बदलाव होने पर प्रयोक्ता को सूचित करता है| चेक समर प्रयोक्ता को केवल बदलाव के संबंधन में सूचित कर सकता है परन्तु यह किसी भी प्रकार के वायरस संक्रमण से कम्प्यूटर की सुरक्षानही कर सकता | गुप्त वायरस (Stealth Viruses) के प्रवेश को चेक समर जानने में सक्षम नही होते है | अधिकतर निरोधक प्रोग्राम में चेक समर की सुविधा होती है |
·             स्कैनर (Scanners):- स्कैनर प्रोग्राम मेमोरी में तथा प्रोग्राम फाइलों में उपस्थित वायरस के बारे में प्रयोक्ता (User) को बताते है तथा यह भी निश्चित करते है कि कप्यूटर संक्रमित है अथवा नही | अधिकतर स्कैनर मेमोरी तथा फाइल दोनों की जाँच करते है | स्कैनर केवल संक्रमण (Virus) की सुचना देते है, वह संक्रमण (Virus) को समाप्त नही कर सकते |
·             रिमूवर(removers):- जब कोई कम्प्यूटर वायरस से ग्रस्त हो जाता है तो इस स्थिति से निपटने के लिए कुछ विशेष कम्पुटर प्रोग्राम होते है जो पहले पूरे सिस्टम (system) में वायरस की जाँच करते है तथा बाद में वायरस को समाप्त कर इसे ठीक करते है | इस प्रकार के प्रोग्राम को वायरस विरोधी प्रोग्राम (Anti Virus Program) कहते है|
·              NORTAN Anti virus:- NORTAN Anti Virus सबसे शक्तिशाली एंटीवायरस है जिसके द्वारा Virus को पकड़ा जा सकता है यह ई-मेल के द्वारा आये हुए वायरसो को भी आसानी से पकड़ सकता हैं | NORTAN Anti Virus का प्रमुख कार्य वायरस को पकड़ कर उसे हार्डडिस्क या फ्लॉपी डिस्क से हटाना हैयह एक ऐसा एंटीवायरस है जो न केवल Virus को हटाता है बल्कि बाद में आने वाले Virus को भी आने से रोकता है |

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